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पुद्गल-कोश
___व्यावहारिक परमाणु पुद्गल अग्निकाय के बीचो-बीच में प्रवेश कर वहाँ स्थित रहकर भी व्यावहारिक परमाणु पुद्गल दग्ध नहीं होता है ।
व्यावहारिक परमाणु पुद्गल पुष्कर संवर्तक नामक महामेघ के मध्य में प्रवेश कर सकता है परन्तु तत्र स्थित रहकर भी व्यावहारिक परमाणु पुद्गल आद्रभाव ( गीलापन ) को प्राप्त नहीं होता है। ...
व्यावहारिक परमाणु पुद्गल गंगा महानदी के प्रतिस्रोत- प्रवेश कर सकता है परन्तु तत्र स्थित रहकर भी व्यावहारिक परमाणु पुद्गल प्रतिस्खलित नहीं होता है।
व्यावहारिक परमाणु पुद्गल उदगावर्त अथवा उदगबिंदु में प्रवेश कर सकता है परन्तु तत्र स्थित व्यावहारिक परमाणु पुद्गल विनष्ट नहीं होता है । •३ द्रव्य रूप से अच्छेद्य, गुण रूप से छेद्य भी है ।
अछेज्जस्स परमाणुस्स कथं छेदो कीरदे ? ण एस दोसो, तस्स दव्वमेव अछेज्ज, ण गुणा इदि अब्भुवगमादो।
__-षट्० खण्ड ४, २, ७ । सू १९९ । टीका । पृ० ९३ द्रव्य की अपेक्षा परमाणु अच्छेद्य है परन्तु गुण की अपेक्षा छेद्य भी है । .३१८ उपचारतः-अस्तिकायत्व
एयपदेसो वि अणू णाणाखंधप्पदेसदो होदि । बहुदेसो उवयारा तेण य काओ भणंति सव्वण्हु ॥
बृद्रसं० गा २६ टीका- 'एयपदेसो वि अणू णाणाखंधप्पदेसदो होदि बहुदेसो' एक प्रदेशोऽपि पुद्गलपरमाणुनानास्कंधरूपबहुप्रदेशतः सकाशाद् बहुप्रदेशो भवति । 'उवयारा' उपचाराद् व्यवहारनयात् "तेण य काओ भणंति सवण्ड" तेन कारणेन कायमिति सर्वज्ञा भणंतोति ।
यद्यपि परमाणु पुद्गल एक प्रदेशी होता है तथापि नाना प्रकार के स्कंध रूप बहुप्रदेशों के कारण बहुप्रदेशी होता है। उपचार अर्थात् व्यवहारनय से सर्वज्ञ भगवान उसे 'काय' कहते हैं।
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