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पुद्गल-कोश
२७३ ३१ ३ नित्यता/अनित्यता (क) x x x। नित्यश्च भवति परमाणुः।
-ठाण० स्था १ । सू ४५ । टीका में उद्धृत
(ख) 'नित्यश्चेति' द्रव्यास्तिकनयापेक्षयाऽनुज्झितमूर्तिः पर्यायापेक्षया तु नीलादिभिराकारैरनित्य एवेति, न ततः परमणीयोऽस्ति द्रव्यमिति परमाणुः।
(ग) अयं सर्वोऽपि द्रव्यप्रस्तारः सदादि-परमाणुपर्यन्तो नित्यः । xxx। द्रव्याथिकैकस्य सर्वस्य वस्तु नित्यत्वान्नोत्पद्यते न विनश्यति चेति स्थितम्।
-कसापा० भा १ । गा १३-१४ । टीका । पृ० २१६
परमाणु पुद्गल नित्य है अर्थात् परमाणु पुद्गल का कभी विनाश नहीं होता है। स्कंध रूप परिणमन होकर भी इसका व्यक्तित्व नष्ट नहीं होता है।
द्रव्याथिक नयको अपेक्षा परमाणु पुद्गल नित्य है ; पर्यायाथिक नयकी अपेक्षा परमाणु पुद्गल अनित्य भी होता है क्योंकि नीलादि आकार अनित्य होते हैं। अतः यहाँ परमाणु पुद्गल को द्रव्याथिक नयकी अपेक्षा नित्य कहा गया है तथा पर्यायाथिक नयकी अपेक्षा अनित्य कहा गया है।
सभी द्रव्य परमाणु समेत नित्य है क्योंकि द्रव्यार्थिक नयकी अपेक्षा समस्त द्रव्य नित्य है अतः न कोई वस्तु उत्पन्न होती है, न कोई वस्तु विनष्ट होती है-यह निश्चित है।
(घ) णिच्चोx x x।
----पंच० गा ८० जयसेन टीका-णिच्चों' नित्यः। कस्मात् । “पदेसदो' प्रदेशतः परमाणोः खलु एकेन प्रदेशेन सर्वदेवाविनश्वरत्वान्नित्यो भवति ।
परमाणु प्रदेश की अपेक्षा नित्य है क्योंकि वह अपने एक प्रदेशत्व को त्रिकाल में भी विनष्ट नहीं करता है।
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