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पुद्गल-कोश
२६५ .६ छमस्थ को पुद्गल का ज्ञान
(क) छउमत्थे णं भंते ! मणूसे परमाणुपोग्गलं कि जाणइ पासइ, उदाहु न जाणइ न पासइ ? गोयमा ! अत्थेगइए जाणइ न पासइ, अत्थेगइए न जाणइ न पासइ।
-भग० श १८ । उ ८ । सू ७ । पृ० ७७७ (ख) छउमस्थे णं भंते ! मणूसे दुपएसियं खधं किंजाणइ पासइ ? एवं चेव। एवं जाव-असंखेज्जपएसियं। छउमत्थे णं भंते ! मणूसे अणंतपएसियं खंधं कि-पुच्छा। गोयमा ! अत्थेगइए जाणइ पासइ १, अत्थेगइए जाणइ न पासइ २, अत्थेगइए न जाणइ पासइ ३, अत्थेगइए म जाणइन पास।
-भग• श १८ । ८ । सू ८, ९ । पृ० ७७७ छदमस्थ मनुष्य द्विप्रदेशी स्कन्ध को न जानता है, न देखता है। इसी प्रकार यावत् संख्यात प्रदेशी स्कन्ध तथा असंख्यात प्रदेशी स्कन्ध को न जानता है, न देखता है।
छद्मस्थ मनुष्य में से अनंतप्रदेशी स्कंध को १-कतिपय जानते हैं, देखते हैं, २–कतिपय जानते हैं, देखते नहीं हैं ३.–कतिपय नहीं जानते हैं पर देखते हैं और ४-कतिपय न जानते हैं, न देखते हैं।
नोट -टीकाकार ने यहाँ छदमस्थ का अर्थ विशिष्ट अवधि ज्ञान रहित किया है। •७ निर्जरा के पुद्गलों का ज्ञान
नेरइया णं भंते ! ते निज्जरापोग्गले कि जाणंति-पासंति ? आहारेंति ? उदाहु न जाणंति-पासंति, न आहारति ?
मागंदिया पुत्ता। नेरइयाणं ते निज्जरापोग्गले न जाणंति, न पासंति, आहारेति । एवं जाव पंचिदियतिरिक्खजोणिया।
-भग० श १८ । उ ३ । सू ६८ नारकी उन निर्जरा पुद्गलों को जानते-देखते नहीं हैं परन्तु आहार रूप में ग्रहण करते हैं। इस प्रकार यावत् पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक तक जानना चाहिए।
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