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पुद्गल-कोश मणुस्सा णं भंते, णिज्जरापोग्गले कि जाणंति पासंति आहारेंति, उवाहु ण जाणति ण पासंति ण आहारेति ?
मागंदिय पुत्ता। अत्थेगइया जाणंति, पासंति, आहारेति । अत्थेगइया न जाणंति, न पासंति, आहारेति ।
से केण?णं! एवं वुच्चइ-अत्येगइया जाणंति-पासंति, आहारति ? अत्थेगइया न जाणंति, न पासंति, आहारेति ?
मागंदिय पुत्ता । मणुस्सा दुविहा पण्णता, तंजहा-संण्णिभूया य, असण्णिभूया य । तत्थणं जे ते असण्णिभूयाय ते णं न जाणंति न पासंति, आहारति । तत्थणं जे ते सण्णिभूया ते दुविहा पण्णत्ता, तंजहा-उववत्ता य अणुवउत्ता य। तत्थणं जे ते अणुवउत्ता ते णं न जाणंति न पासंति, आहारति । तत्थणं जे ते उवउत्ता तेणं जाणति पासंति, आहारेति। से तेण?णं मागंदिय पुत्ता; एवं वुच्चइ-अत्थेगइया न जाणंति न पासंति, आहारेति । अत्थेगइया जाणंति पासंति, आहारेति।। वाणमंतर-जोइसिया जहा नेरइया। ( वेमाणिया ) जहा मणुस्सा ।
- भग० श १८ । उ ३ । सू ६९, ७०
कतिपय मनुष्य निर्जरा के पुद्गलों को जानते-देखते हैं और आहार रूप में ग्रहण करते हैं और कतिपय मनुष्य नहीं जानते हैं, नहीं देखते हैं परन्तु आहार रूप से ग्रहण करते हैं। इसका अभिप्राय यह है
__ मनुष्य दो प्रकार के कहे गये हैं। संज्ञी भूत और असंज्ञीभूत । जो असंज्ञीभूत हैं वे निर्जरा के पुद्गलों को नहीं जानते हैं, नहीं देखते हैं किन्तु आहार रूप से ग्रहण करते हैं । जो संज्ञीभूत है वे दो प्रकार के कहे गये हैं यथा-उपयुक्त और अनुपयुक्त । जो अनुपयुक्त हैं, वे नहीं जानते हैं. नहीं देखते हैं किन्तु आहार रूप से ग्रहण करते हैं । और जो उपयुक्त है वे जानते हैं, देखते हैं और आहार रूप से ग्रहण करते हैं । इसलिये ऐसा कहा गया है कि कुछ मनुष्य नहीं जानते हैं, नहीं देखते और आहार रूप से ग्रहण करते हैं तथा कुछ जानते हैं, देखते हैं और आहार रूप से ग्रहण करते हैं। वाणव्यन्तर और ज्योतिषी देवों का कथन नैरयिकों के समान जानना चाहिए । वैमानिक देवों का कथन मनुष्य के समान जानना चाहिए ।
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