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पुद्गल-कोश चाहिए। अर्थात् परमाणु पुद्गल व स्कन्ध पुद्गल आदि को जिस समय केवली जानते हैं उस समय देखते नहीं और जिस समय देखते हैं उस समय जानते नहीं हैं।
केवल ज्ञानी इस रत्नप्रभा पृथ्वी को अनाकारों से, अनुपमाओं से, अदृष्टान्तों से, अवर्णों से, असंस्थानों से, अप्रमाणों से और अप्रत्यवतारों से देखते हैं, जानते नहीं हैं। इसका कारण यह है कि-जो अनाकार होता है वह दर्शन ( देखना ) होता है और साकार होता है वह ज्ञान (जानना) होता है। इस अभिप्राय से हे गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि केवली इस रत्नप्रभा पृथ्वी को अनाकारों से यावत् देखते हैं, जानते नही हैं ।
इसी प्रकार ( अनाकारों से यावत् अप्रत्यवतारों से शेष छहों नरक पृथ्वियों, वैमानिक देवों के विमानों ) यावत् ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी, परमाणु पुद्गल, द्विप्रदेशी स्कन्ध यावत अनन्त प्रदेशी स्कन्ध को केवली देखते हैं, किन्तु जानते नहीं हैं-यह कहना चाहिए। ५ स्कन्ध पुद्गल का ज्ञान
केवली ण भंते ! परमाणुपोग्गलं परमाणुपोग्गलेत्ति जाणइ पासइ ? एवं चेव ( हंता, जाणइ पासइ), एवं दुपएसियं खंध, एवं जाव-जहा णं भंते ! केवली अणंतपएसियं खंधं अणतपएसिए खंधेत्ति जाणइ पासइ तहा गं सिद्ध वि अणंतपएसियं जाव पासइ ? हंता, जाणइ, पासइ।
- भग० श १४ । उ १० । सू १५३-५४ । पृ. ६५३ केवली ज्ञानी परमाणु पुद्गलों को जानते हैं, देखते हैं कि केवल ज्ञानी परमाणु पुद्गल को-यह परमाणु पुद्गल है-इस प्रकार जानते हैं, देखते हैं।
इसी प्रकार केवल ज्ञानी द्विप्रदेशी स्कन्ध यावत् अनन्त प्रदेशी स्कन्ध को जानते हैं, देखते हैं।
इसी प्रकार सिद्ध भी परमाणु पुद्गल को जानते हैं, देखते हैं । द्विप्रदेशी स्कन्ध से यावत् अनन्त प्रदेशी स्कन्ध को सिद्ध जानते हैं, देखते हैं।
नोट-यहाँ केवली शब्द से 'भवस्थ केवलौ' को ग्रहण करना चाहिए । अतःसिद्ध के विषय में पृथक् प्रश्न किया गया है।
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