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पुद्गल - कोश
वर्तन को लेकर स्वरूप से उनका बहुत्व जाना जाता है । यदि ऐसा नहीं होता है तो उसका असंख्येय अथवा अनंत भाग होता है ।
जेणिक्करासिणो च्चिय, असंखभागेण सेसरासीणं । तेणाऽसखेज्जगुणा, अणवो कालापसेहिं ॥१९॥
अभयदेवसूरि टीका- - 'न शेषराश्यो' इत्यास्याऽयमर्थः - अनन्तप्रदेशिकराशेरनन्तगुणास्ते, संख्यातप्रदेशिक राशेस्तु संख्यातभागे, संख्यातभागस्य च विवक्षया नाऽत्यन्तम् - अल्पता, कालतः सप्रदेशेषु च वृत्तिमताम् अणूनां बहुत्वात्, कालाऽप्रदेशानां च सामयिकत्वेनाऽत्यन्तमत्पत्वात् कालाऽप्रदेशे - भ्योऽसंख्यातगुणत्वं द्रव्याऽप्रदेशानाम् इति ।
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रत्नसिंहसूरि टीका - येनं कराशेरे वासंख्यातप्रदेशिक स्कंधाभिधानस्यैवासंख्यातभागेऽणवो वर्तन्ते, न शेषराश्योः संख्यातप्रदेशिकानन्तप्रदेशिकाभिधानयोरिति । 'अयमथ ः - अनन्तप्रदेशिक स्कंधराशेरनन्तगुणाः, सख्यातप्रदेशिक स्कंधराशेस्तु संख्यातभागे वर्त्तन्ते ; संख्यात भागस्य च विवक्षया पूर्वोक्तयुक्त्या च नात्यन्तमल्पतेति । तेन कालतः सप्रदेशेष्वप्रदेशेषु च वृत्तिमतामणूनां बहुत्वात् कालाप्रदेशानां च समयमात्रकालवस्थायित्वेनात्यन्तमल्पत्वात्कालाप्रदेशेभ्योऽसंख्यातगुणा द्रव्या प्रदेशा इति ।
जिस कारण से एक राशि के ही असंख्येय भाग हैं, लेकिन शेष की दो राशियों के असंख्येय भाग नहीं हैं उस कारण से कालाप्रदेश से अणु असंख्येय गुण हैं ।
शेष को दो राशियाँ नहीं हैं - इसका इस प्रमाण से निष्कर्ष है - अनंत प्रदेशिक राशि से वे अनंत गुण हैं । संख्यात प्रदेशिक राशि के तो सख्यातवें भाग हैं और विवक्षा से संख्यात भाग की अत्यन्त अल्पता नहीं है । काल की अपेक्षा सप्रदेश और अप्रदेश में वृत्तिवाले अणुओं का बहुत्व है और कालाप्रदेशिक परमाणु मात्र एक समय की स्थितिवाले होने के कारण अत्यन्त अल्प हैं तथा वैसा होने से — कालाप्रदेश पुद्गलों से द्रव्याप्रदेश पुद्गल असंख्यात गुण हैं ।
एतो असंखगुणिया हवंति खेत्ताऽपएसिया समए । जं ते तो (ता) सव्वे च्चिय, अपएसा खेत्तओ अणवो ॥२०॥ दुपएसियाइएसु वि पएसपरिवुढिए ठाणेसु । इक्किक्कोऽविअ रासी खेत्तापएसाणं ॥ २१ ॥ *
लब्भइ
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