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पुद्गल-कोश __ अनंत गुण कृष्णवर्णवाले पुद्गल अनंत गुण कृष्णवर्णवाले पुद्गल से कर्कश स्पर्श पर्याय रूप से कदाचित् न्यून है, कदाचित् तुल्य है, कदाचित् अधिक है। यदि न्यून है तो षट्स्थान न्यून है। यदि अधिक है तो षट्स्थान अधिक है।
जिस प्रकार कर्कश स्पर्श पर्याय रूप से अनंत गुण कृष्णवर्णवाले पुद्गल अनंत गुण कृष्णवर्णवाले पुद्गल से षट्स्थान न्यूनाधिक है अथवा तुल्य है वैसे ही मृदु-गुरुलघु-शीत-उष्ण-स्निग्ध-रूक्ष स्पर्श पर्याय रूप से षट्स्थान न्यूनाधिक है अथवा तुल्य है।
अतः अनंत गुण कृष्णवर्णवाले पुद्गलों में अनंत पर्याय होते हैं ।
जिस प्रकार कृष्णवर्णवाले पुद्गलों का वर्णन किया है वैसे ही अन्य वर्गों का, (नील-रक्त-पीत-शुक्लवर्ण) सुगन्ध-दुर्गन्ध का ; तिक्त-कटु-कषाय-आम्ल-मधुर रसों का तथा कर्कश-मृदु-गुरु-लघु-शीत-उष्ण-स्निग्ध-रूक्ष स्पर्शों का वर्णन करना चाहिए। (ख) जघन्य-उत्कृष्ट-अजघन्य-अनुत्कृष्ट गुण की अपेक्षा पुद्गल और
पर्याय संख्या (ख) जहण्णगुणकालयाणं भंते ! पोग्गलाणं केवइया पज्जवा पन्नत्ता? गोयमा ! अणंता। से केण?णं? गोयमा ! जहण्णगुणकालए पोग्गले जहण्णगुणकालयस्स पोग्गलस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले, पएसट्टयाए छट्ठाणवडिए, ओगाहणट्ठयाए चउट्ठाणवडिए, ठिईए चउट्ठाणवडिए, कालवण्णपज्जवेहिं तुल्ले, अवसेसेहिं वण्ण-गंध-रस-फासपज्जवेहि य छट्ठाणवडिए से एएण?णं गोयमा ! एवं वुच्चइ जहण्णगुणकालयाणं पोग्गलाणं अणंता पज्जवा पन्नत्ता। एवं उक्कोसगुणकालए वि। अजहण्णमणुक्कोसगुणकालए वि एवं चेव । नवरं सट्टाणे छट्ठाणवडिए ।५५७। __ एवं जहा कालवण्णपज्जवाणं बत्तध्वया भणिया तहा सेसाण वि वण्णगंध-रस-फासपज्जवाणं वत्तव्ववा भाणियन्वा, जाव अजहण्णमणुक्कोसलुक्खे सट्टाणे छट्ठाणवडिए।
-- पण्ण ० प ५ । सू ५५८ । पृ० ३६९-७० जघन्य गुण कृष्णवर्णवाले ( एक गुण कृष्णवाले ) पुदगलों में अनंत पर्याय होते हैं। जघन्य गुण कृष्णवर्णवाले पुद्गल जघन्य गुण कृष्णवर्णवाले पुद्गल से द्रव्य रूप से तुल्य होते हैं।
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