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पुद्गल-कोश परमाणुपुद्गल जघन्य एक समय तथा उत्कृष्ट आवलिका के असंख्येय भाग तक सर्वांशरूप से संकप रह सकता है। चूंकि परमाणु एकप्रदेशी है अत: परमाणु का यदि कंपन होता है तो सर्वाशरूप से कंपन होता है, देशतः कंपन नहीं होता है ।
द्विप्रदेशीस्कंध यावत् अनंतप्रदेशी स्कंध पुद्गल जघन्य एक समय तथा उत्कृष्ट आवलिका के असंख्येय भाग तक देशतः ( अंशतः ) सकंप रह सकता है ।
द्विप्रदेशीस्कंध यावत् अनंतप्रदेशी स्कंध पुद्गल भी जघन्य एक समय तथा उत्कृष्ट आवलिका के असख्येयभाग तक सर्वांशरूप से सकंप रह सकता है ।
परमाणुपुद्गल ( बहुवचन ) सदाकाल सर्वांशरूप से सकंप रहते हैं। परमाणुपुद्गल (बहुवचन ) कुछ सकंप ( सर्वांशरूप से ) तथा कुछ निष्कंप रहते हैं अतः ऐसा कहा जाता है कि परमाणुपुद्गल सदा सकंप ( सर्वांशरूप से ) भी रहते हैं।
द्विप्रदेशीस्कंध पुद्गल ( बहुवचन ) यावत् अनंतप्रदेशी स्कंध पुद्गल (बहुवचन) सदाकाल-देशतः सकंप रहते हैं।
द्विप्रदेशीस्कंध पुद्गल ( बहुवचन ) यावत् अनंतप्रदेशीस्कंध पुद्गल (बहुवचन) सदाकाल सर्वांशरूप से नि कप भी रहते हैं।
द्विप्रदेशी स्कंध पुद्गल (बहुवचन) यावत् अनंतप्रदेशी स्कंध पुद्गल (बहुवचन) कुछ देशतः सकंप रहते हैं, कुछ सर्वांशरूप से सकंप रहते हैं तथा कुछ निष्कंप रहते हैं अतः ऐसा कहा जाता है कि द्विप्रदेशादि स्कंध (बहुवचन) यावत् अनंतप्रदेशी स्कंध पुद्गल (बहुवचन) सदाकाल देशतः सकंप तथा सदाकाल सर्वांशरूप से सकंप भी रहते हैं। (६) वर्ण अपेक्षा (७) गंध अपेक्षा (८) रस अपेक्षा (९) स्पर्श अपेक्षा
एक गुण कृष्णवर्णवाले पुद्गल को एक गुण कृष्णवर्ण रूप सिथित जघन्य एक समय की और उत्कृष्ट असंख्यात काल की होती है। इसी प्रकार द्विगुण यावत् अनंत गुण कृष्णवर्णवाले पुद्गल की स्व-स्व गुण रूप स्थिति जघन्य एक समय की, उत्कृष्ट असंख्यात काल की होती है। इसी प्रकार नील-रक्त-पीत-शूक्लवर्ण के पुद्गलों के विषय में समझना चाहिए।
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