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पुद्गल-कोश
२५७ जिस प्रकार निष्कंप परमाणु पुदगल ( बहुवचन ) के अंतर काल के विषय में कहा है वैसा ही निष्कंप दो प्रदेशी (बहुवचन) यावत् दस प्रदेशी (बहुवचन) यावत अनंतप्रदेशी स्कंध ( बहुवचन ) पुद्गलों के अंतर काल के विषय में समझना चाहिए।
परमाणु सर्वांशरूप से ही कंपन करता है, देशतः कंपन नहीं करता है अतः सकंप परमाणु का स्वस्थान तथा परस्थान अंतरकाल (देखें २२) पाठ के अनुसार समझना चाहिए।
देशतः ( अंशतः) सकंप द्विप्रदेशी स्कंध का स्वस्थान की अपेक्षा ( सकंपता) अंतरकाल जघन्य एक समय का तथा उत्कृष्ट असंख्यात काल का होता है ।
सर्वांशरूप से सकंप द्विप्रदेशी स्कंध का परस्थान की अपेक्षा ( सकंपता) अंतर काल जघन्य एक समय का तथा उत्कृष्ट अनंतकाल का होता है।
जैसा अंशतः तथा सर्वांशरूप से सकंप द्विप्रदेशी स्कंध के अंतरकाल के विषय में कहा है वैसा ही अंशतः तथा सर्वांशरूप से सकप तीन प्रदेशी यावत् दसप्रदेशी यावत् अनंत प्रदेशी स्कंध के अंतरकाल के विषय में भी समझना चाहिए।
सर्वांशरूप से सकंप परमाणु पुद्गल (बहुवचन ) का अंतरकाल नहीं होता है। अंशतः सकंप द्विप्रदेशी स्कंध (बहुवचन ) का भी अन्तरकाल नहीं होता है।
सर्वांश रूप से सकंप द्विप्रदेशी स्कन्ध ( वहुवचन ) का भी अन्तरकाल नहीं होता है।
__ जैसा अंशतः तथा सर्वांशरूप से सकंप द्विप्रदेशी स्कंध (बहुवचन ) के अंतरकाल के विषय में कहा है वैसा ही अंशतः तथा सर्वाशरूप से सकंप तीन प्रदेशी (बहुवचन) यावत् अनंत प्रदेशी स्कंध (बहुवचन) के विषय में भी समझना चाहिए। (६) वर्णत्व अपेक्षा (७) गंधत्व अपेक्षा (८) रसत्व अपेक्षा (९) स्पर्शत्व अपेक्षा
एक गुण कृष्णवर्णवाले पुद्गल अपने गुणत्व को छोड़कर अन्य संख्यक गुणत्व को प्राप्त कर पुनः एक गुण कृष्णत्व को प्राप्त होता है इसमें जितना समय लगता है यह उसका अंतरकाल है और यह जघन्य एक समय का, उत्कृष्ट असंख्यात काल का होता है।
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