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पुद्गल-कोश
इसी प्रकार दो गुण यावत् अनंत गुण कृष्णत्व का अन्तरकाल समझना चाहिए।
कृष्णवर्ण की तरह अन्य वर्णों का अन्तरकाल समझना चाहिए। ___वर्ण की तरह गंध-रस-स्पर्शत्व की अपेक्षा अन्तरकाल का वर्णन करना चाहिए। (१०) सूक्ष्म परिणमन अपेक्षा (११) बादर परिणमन अपेक्षा
सूक्ष्म परिणत पुदगल बादर रूप में परिणत होकर पुनः सूक्ष्म परिणमनत्व को प्राप्त होता है यह उसके सूक्ष्म परिणमनत्व का अन्तरकाल है और यह जघन्य एक समय का, उत्कृष्ट असंख्यात काल का होता है ।
इसी प्रकार बादर परिणत पुद्गल का अन्तरकाल समझना चाहिए। (१२) शब्द परिणति अपेक्षा (१३) अशब्द परिणति अपेक्षा
शब्द परिणत पुद्गल अशब्द रूप में परिणत होकर पुन: शब्द रूप परिणति को प्राप्त होता है-यह उसके शब्द परिणमन का अन्तरकाल है और यह जघन्य एक समय का, उत्कृष्ट असंख्यात काल का होता है।
अशब्द परिणत पुद्गल शब्द रूप में परिणत होकर पुनः अशब्द रूप परिणति को प्राप्त होता है यह उसके अशब्द परिणमन का अम्तरकाल है और यह जघन्य एक समय का, उत्कृष्ट आवलिका के असंख्यात भाग का होता है। •२३ पुद्गल और आकाशास्तिकाय
आगासस्थिकाएगं भंते ! जीवाणं 'अजीवाण य' कि पवत्तति ?
गोयमा! आगासत्थिकाएणं जीवदव्वाणं 'य अजीवदव्वाण य' मायणभूए।
एगेण वि से पुण्णे, दोहि वि पुणे सयंपि भाएज्जा। कोडिसएणं वि पुण्णे, कोडिसहस्सपि भाएज्जा ॥१॥ अवगाहणालक्खणे णं आगासत्थिकाए।
-~भग० श १३ । उ ४ । सू ५८ । पृ. ६०१
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