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पुद्गल-कोश (छ) अहेलोगखेत्तलोगस्स णं भंते ! एगंमि आगासपएसे कि जीवा, जीवदेसा, जीवप्पएसा, अजीवा, अजीवदेसा, अजीवपएसा ?x xx। जे अजीवा ते दुविहा पन्नत्ता, तंजहा-रूवी अजीवा य अरूवी अजीवा य, रूवी तहेव x x x। तिरियलोगखेत्तलोगस्स णं भंते ! एगंमि आगासपएसे किं जीवा ? एवं जहा अहेलोगखेत्तलोगस्स तहेव, एवं उड्ढलोगखेत्तलोगस्स वि x x x।
-भग० श ११ । उ १० । सू १५-१६ । पृ० ६३२ (ज) लोगस्स जहा अहेलोगखेत्तलोगस्स एगंमि आगासपएसे।
___ -भग• श ११ । उ १० । सू १६ । पृ० ६३२ पुद्गलास्तिकाय धर्मास्तिकाय की तरह अवगाहित होकर रहती है और असंख्यातप्रदेश अवगाहित होकर रहती है क्योंकि लोकाकाश के प्रदेश असंख्यात है। पुद्गलास्तिकाय लोकाकाश के केवल संख्यातप्रदेश को ही अवगाहित करके नहीं रहती है, लोकाकाश के सर्वप्रदेशों में अवगाहित है। वह आकाश के अनंतप्रदेशों में अवगाहित होकर नहीं है। जब सर्व लोकाकाश को अवगाहित करती है तब इसकी प्रदेश संख्या कृतयुग्म होती है परन्तु व्योज, द्वापरयुग्म यथा कल्योज रूप प्रदेश संख्या नहीं होती है।
पुद्गलों का अवगाह लोकाकाश के एक प्रदेश या अधिक असंख्यात तक में विकल्प से होता है।
एक परमाणुपुद्गल का एक ही प्रदेश में अवगाह होता है। बंध को प्राप्त हुए या बंध को नहीं प्राप्त हुए दो परमाणु का आकाश के एक प्रदेश में या दो प्रदेश में अवगाह होता है ; बंध को प्राप्त हुए या बंध को नहीं प्राप्त हुए तीन परमाणु का आकाश के एक प्रदेश में, दो या तीन प्रदेश में अवगाह होता है ।
इसी प्रकार चार प्रदेशी यावत दस प्रदेशी यावत संख्यात प्रदेशी पुदगल स्कंधों के विषय में समझना चाहिए। इनका अवगाह एक से लेकर अधिक से अधिक अपनी प्रदेश संख्या तक विकल्प से होता है। असंख्यातप्रदेशी तथा अनंतप्रदेशी स्कंधों का आकाश के एक प्रदेश में यावत् दस प्रदेश में यावत् संख्यातप्रदेश में यावत् असंख्यातप्रदेश में विकल्प से अवगाह होता है ।
अवगाहन स्वभाव होने से तथा सूक्ष्म परिणमन होने से एक स्थान पर पुद्गलों का अवगाह हो जाता है। जैसे एक ढक्कन में अनेक दीपकों का प्रकाश रह जाता है वैसे ही मूर्तमान पुद्गलों का एक जगह अवगाह विरोध को प्राप्त नहीं होता है।
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