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पुद्गल-कोश
___ अलोकाकाश-अलोक में पुदगल नहीं है, अन्य द्रव्य भी नहीं है ; केवल आकाश द्रव्य का एक देश हैं अर्थात् लोकाकाश का भाग बाद देकर जितना आकाशास्तिकाय का क्षेत्र है उसको अलोकाकाश कहते हैं ; वह आकाश द्रव्य का एक देश है क्योंकि उससे लोक क्षेत्र बाद है । इस अलोक में पुद्गल द्रव्य का कोई भेद नहीं है।
नोट- अलोक में आकाश का देश, प्रदेश है। परन्तु स्कन्ध नहीं है। .१८ पुद्गल और प्रदेश •१ पुद्गल के प्रदेश को अनंतता
(क) आगासत्थिकाए वि, जीवस्थिकाए-पोग्गलत्थिकाए x x x। तिण्णं वि पएसा अणंता भाणियव्वा।
- भग• श २ । उ १० । सू ६२ । पृ० ४३४ (ख) संख्येयाऽसंख्येयाश्च पुद्गलानाम् ।
-तत्त्व० अ५ । सू १० भाष्य-संख्येया असंख्येया-अनंताश्च पुद्गलानां प्रदेशा भवन्ति-अनन्ता इति वर्तते। नाणोः
---तत्त्व० अ ५ । सू ११ भाष्य अणोः प्रदेशा न भवन्ति ।
(ग) 'च' शब्दादनन्ताश्चेत्यनुकृष्यते । कस्यचित्पुद्गल द्रव्यस्य द्वयगुकादेः संख्येयाः प्रदेशाः कस्यचिदसंख्येया अनंताश्च ।
-सर्व० अ ५ । सू १० । पृ. २७५ (घ) मूत्ते तिविहपदेसा।
–बृद्रसं० अघि १ । गा २५ । उत्तरार्ध टीका-"मूत्ते तिविहपदेसा" मूत्तें पुद्गलद्रव्ये संख्यातासंख्यातानन्ताणूनां पिण्डाः स्कंधास्त एव विविधाः प्रदेशा भण्यन्ते। (ङ) जीवा पोग्गल काया धम्माऽधम्मा पुणो य आगासं। सपदेसेहिं असंखा पत्थि पदेस त्ति कालस्स ॥
-प्रव. अ२ । गा ४३
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