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पुद्गल-कोश
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अजघन्य स्निग्ध और रूक्ष गुणवाले दो परमाणुओं के समुदाय समागम से द्विप्रदेशी परमाणुपुद्गल द्रव्यवर्गणा होती है ।
एवं तिपदेसिय चतुपदेसिय-पंचपदेसिय छप्पदेसिय सत्तपदेसिय अटुपदेसिय- णवपदेसिय-बसपदेसिय संखेज्जपदेसिय असंखेज्जपदेसिय परित्तपदेसिय अपरित्तपदेसिय - अनंतपदेसिय अनंताणंतपदेसियपरमाणुपोग्गलदव्ववग्गणा
णाम ||७८ ॥
- षट्० ५, ६ 1 सू ७८ । पु १४
इसी प्रकार त्रिप्रदेशी, चतुः प्रदेशी, पंचप्रदेशी, षट् प्रदेशी, सप्तप्रदेशी, अष्टप्रदेशी, नवप्रदेशी, दसप्रदेशी, संख्यातप्रदेशी, असंख्यात प्रदेशी, परीतप्रदेशी, अपरीतप्रदेशी, अनंतप्रदेशी और अनंतानंत प्रदेशी परमाणुपुद्गल द्रव्यवर्गणा होती है ।
अनंतानंत पदेसि परमाणुपोग्गलदव्यवग्गणाणमुवरिआहारवव्वबग्गणा णाम ॥७९॥
- षट् ० ५, ६ । सु ७९ । पु १४
• १४ पुद्गल की आत्मा
पोग्गलाणमत्ता रूव-रस- गंध. फासादिलक्खणं सरूवं पोग्गलअत्ता णाम । तेसि च अनंतभागवड्डि- असंखेज्जभागवड्डि-संखेज्जभागवड्डि-संखेज्जगुणवड्डिअसखेज्जगुणवट्टि - अनंतगुणवड त्ति स्वादीणं छव्विहासो वडीओ होंति । तासि परूवणा जहा भावविहाणे कदा तहा कायव्वा । सट्टाणस्स वि असंखेज्जलोगमेत्ताणि द्वाणाणि होंति । तेसि पि एवं चैव परूवणा कायव्वा ।
षट्० पु १६ । पृ० ५१५
'अत्त' का अर्थ आत्मा अर्थात् अर्थात् स्वरूप है । अत: 'पोग्गलाणं - अत्ता पोग्गलअत्ता' इस अपेक्षा से पुद्गलात्त ( पुद्गलात्मा ) पद से पुद्गलों का रूप, रस, गंध व स्पर्श आदि रूप लक्षण विवक्षित है । उन रूपादिकों के अनंत भाग वृद्धि, असंख्यातभागवृद्धि, संख्यात भागवृद्धि, संख्यातगुणवृद्धि, असंख्यातगुणवृद्धि और अनंतगुणवृद्धिये छः वृद्धियाँ होती हैं । उनकी प्ररूपणा जैसे भावविधान में की गयी है वैसे करना चाहिए । स्वस्थान के भी असंख्यात लोक मात्र स्थान होते हैं । उनकी भी इसी प्रकार से प्ररूपणा करना चाहिए ।
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