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पुद्गल-कोश
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___ जिस प्रकार कृष्णवर्णवाले पुदगल की भाव की अपेक्षा तुल्यता कही है- वैसे ही नील-रक्त-क्षीत-शुक्लवर्णवाले पुद्गल की भाव की अपेक्षा तुल्यता समझनी चाहिए ।
इसी प्रकार सुगन्ध-दुर्गन्धवाले पुद्गल की ; तिक्त-कटु-कषाय-आम्ल-मधुर रस वाले पुद्गल की तथा कर्कश-मृदु-गुरु-लघु-शीत-उष्ण-स्निग्ध-रूक्ष स्पर्शवाले पुद्गल की भाव की अपेक्षा तुल्यता जाननी चाहिए। .५ संस्थान की अपेक्षा
परिमंडल संस्थान, अन्य परिमंडल संस्थान के साथ तुल्य है परन्तु परिमंडल संस्थान परिमंडल संस्थान से व्यतिरिक्त अन्य वृत्तादि संस्थानों के साथ संस्थान से तुल्य नहीं है।
_जिस प्रकार परिमंडल संस्थान की संस्थान की अपेक्षा तुल्यता कही है-वैसे ही वृत्त-व्यस्र-चतुरस्र-आयत संस्थान की संस्थान की अपेक्षा तुल्यता समझनी चाहिए ।
१७ पुद्गल और क्षेत्र १ पुद्गल लोकप्रमाण है (क) धम्मो अहम्मो आगासं, कालो पुग्गलजंतवो। एस लोगो त्ति पन्नत्तो, जिणेहि वरदंसिहि ॥
- उत्त० अ २८ । गा ७ । पृ० १०२८
(ख) चहि अस्थिकाएहि लोग फुडे पन्नत्ते, तंजहा-धम्मत्थिकाएणं, अधम्मत्थिकाएणं, जीवत्थिकाएणं, पोग्गलत्थिकाएणं।
- ठाण० स्था ४ । उ ३ । सू ३३३ । पृ० २४७ (ग) धम्माऽधम्मा कालो पुग्गलजीवा य संति जावदिए। आयासे सो लोगो तत्तो परदो अलोगुत्ति ॥
- बृद्रसं० गा २० (घ) पोग्गलजीवणिबद्धो धम्माधम्मत्थिकायकाड्डौ।
वट्टदि आगासे जो लोगो सो सम्वकाले दु॥
प्रव.अ २ । गा ३६
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