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पुद्गल-कोश
२१७ परमाणुपोग्गलाणं भंते ! दव्वट्ठयाए कि कडजुम्मा-पुच्छा । गोयमा ! ओघादेसेणं सिय कडजुम्मा जाव-सिय कलियोगा, विहाणादेसेणं नो कडजुम्मा, नो तेयोगा, नो दावरजुम्मा, कलियोगा। एवं जाव अणंतपएसिया खंधा।
- भग० श २५ । उ ४ । सू ५९, ६ ० । पृ० ८६६-६७ पुद्गलास्तिकाय-द्रव्यरूप से-कदाचित् कृतयुग्म होता है, कदाचित त्र्योज रूप होता है, कदाचित् द्वापरयुग्म होता है तथा कदाचित् कल्योज रूप होता है ।
जिस संख्या में चार का भाग देने से पूरा-पूरा भाग जाय वह संख्या कृतयुग्म संख्या, जिसमें दो बाकी बचे वह द्वापरयुग्म संख्या, जिसमें तीन बाकी बचे वह व्योज संख्या तथा जिसमें एक बाकी बचे वह कल्योज संख्या है।
पुद्गलास्तिकाय की संख्या द्रव्यरूप से अनंत होती है परन्तु उसमें संघातभेद होने के कारण उसकी अनंतता अनवस्थित होती है अतः पुद्गलास्तिकाय में द्रव्यरूप में कृतयुग्मादि चारों राशियाँ पाई जाती है-कदाचित् कृतयुग्म, कदाचित योज, कदाचित् द्वापरयुग्म तथा कदाचित् कल्योज रूप में पाई जाती है। ___ धर्मास्ति काय, अधर्मास्तिकाय और जीव के प्रदेश कृतयुख्म-संख्यक है क्योंकि उनके असंख्यात प्रदेश अवस्थित रहते हैं-इसी प्रकार पुद्गलास्तिकाय के अनत प्रदेश अवस्थित होने के कारण कृतयुग्म राशि रूप होते हैं अर्थात् पुद्गलास्तिकाय का सर्वरूप से विवेचन करने से उसके अनंत प्रदेश अवस्थित रहते हैं, घटते-बढ़ते नहीं हैं । और वे अनंत प्रदेश कृतयुग्म-संख्यक होते हैं ।
एक परमाणुपुद्गल-द्रव्य रूप से कृतयुग्म नहीं है, त्र्योज रूप नहीं है, द्वापरयुग्म नहीं है परन्तु कल्योज रूप है ।
इसी प्रकार द्विप्रदेशी स्कंध यावत् अनंतप्रदेशी स्कंध कृतयुग्म रूप नहीं है, त्र्योज रूप नहीं है, द्वापरयुग्म रूप नहीं है परन्तु कल्योज रूप है।
परमाणुपुद्गलों का औधिक विवेचन करने से द्रव्य रूप से उनकी संख्या कदाचित कृतयुग्म रूप, कदाचित् योजरूप, कदाचित् द्वापरयुग्म रूप तथा कदाचित कल्योज रूप होती है।
तथा विधानादेश से ( व्यक्तिगत रूप से ) विवेचन करने पर द्रव्य रूप से उनकी संख्या कृतयुग्म, व्योज रूप, द्वापरयुग्म नहीं होती है परन्तु कल्योज रूप होती है।
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