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पुद्गल-कोश
•२ पुद्गल और सादि पारिणामिक भाव
से कि तं सादिपारिणामिए ? सादिपारिणामिए अणेगविहे पन्नत्ते, तंजा - xxx । परमाणुपोग्गले, दुपदेसिए जाव अनंतपदेसिए । - अणुमो० सू २४९ । पृ० १११२-३ टीका - पुद्गलानामसंख्येयकाला दूर्ध्वतः स्थित्यभावात्सादिपरिणाम
तेति ।
परमाणुपुद्गल, द्विप्रदेशौ स्कंध यावत् अनंतप्रदेशी स्कंध में स्थिति की अपेक्षा सादिपारिणामिक भाव होता है ।
परमाणु, द्विप्रदेशी स्कंध यावत् अनंतप्रदेशौ स्कंध की स्थिति उत्कृष्ट असंख्यात - काल से अधिक नहीं होती है अतः इनमें सादिपारिणामिक भाव कहा गया है ।
•३ पुद्गल और उदय पारिणामिक भाव
(क) उदयपरिणामिए पुग्गला उ सव्वेसु पुण जीवा ।
-कर्म० भा १ । गा १५ । गाथा का उत्तरार्धं । टीका में उद्धृत (ख) पोग्गलदव्वेसु ओदइय-पारिणामियाणं दोन्हं चेव भावाणमुवलंभा x x x | पोग्गलदव्वभावा पुणकम्मोदएण विस्ससादो व उप्पज्जंति x x x ।
- षट्० खं• २, ७ । गा १ । टीका । पु ५ । पृ० १८६, ८८
पुद्गल द्रव्य में उदय और पारिणामिक — दोनों भाव होते हैं । पुद्गल द्रव्य के भाव कर्मों के उदय से अथवा विस्रसा - स्वभाव से उत्पन्न होते हैं ।
(ग) उदयपरिणामिरूपं तु सर्वभावानुगा जीवाः ।
- प्रशम० श्लो २०९ । उत्तराधं
टीका - पुद्गलद्रव्यं पुनरौदयिके भावे भवति पारिणामिके च । परमाणुः परमाणुरिति अनादिपारिणामिको भावः । आदिमत्पारिणामिकस्तु द्रघण कादिरभेन्द्रधनुरादिश्च । वर्णरसादिपारिणामिक परमाणूनां स्कंधानां चौदयिको भावः द्वणुकादिसंहतिपरिणामश्चेति ।
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