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पुद्गल-कोश से कि तं अणाणुपुव्वी ? अणाणुपुवी-एयाए चेव एगाइयाए एगुतरियाए अणंतगच्छगयाए सेढीए अन्नमन्नब्भासो दुरूवुणो। से तं अणाणुपुवी। से तं ओवणिहिया दव्वाणुपुवी।
-अणुओ० सू १३१ से १३८ । पृ० ८५, ८६ टोका-'पूर्वानुपूर्वी' त्यादि तस्मात्प्रथमात्प्रभृति आनुपूर्वी अनुक्रमः परिपाटी पूर्वानुपूर्वी, पाश्चात्यात् चरमादारभ्य व्यत्ययेनेवानुपूर्वी पश्चानुपूर्वी, न आनुपूर्वी अनानुपूर्वी यथोक्तप्रकाराव्यतिरिक्तरूपेत्यर्थः। तत्र द्रव्यानुपूर्व्यधिकारात् धर्मास्तिकायादीनामेव च द्रव्यत्वादिदमाह x x x। 'से कि तं पच्छाणुपुव्वीत्यादि', पश्चात् प्रभृति प्रतिलोमपरिपाटी पश्चानुपूर्वी, उदाहरणमुत्क्रमेणंदमेव अद्धासमय इत्यादि । 'से कि तं अणाणुपुवी' त्यादि, न आनुपूर्वी अनानुपूर्वी यत्रायं द्विप्रकारोऽपि क्रमो नास्ति, एवमेवादवितर्कतया विवक्ष्यत इत्यर्थः ।
द्रव्यों के स्वरूप को समीप करने की निधि को औपनिधिका द्रब्यानुपूर्वी कहते हैं। वह औपनिधिका द्रव्यानुपूर्वी तीन प्रकार की होती है - यथा-(१) पूर्वानुपूर्वी, (२) पश्चात् आनुपूर्वी तथा (३) अनानुपूर्वी ।
प्रथम से आरम्भ कर -अनुक्रमतापूर्वक द्रव्यों के वर्णन करने को पूर्वानुपूर्वी कहते हैं - यथा-(१) धर्मास्तिकाय, (२) अधर्मास्तिकाय, (३) आकाशास्तिकाय, (४) जीवास्तिकाय, (५) पुद्गलास्तिकाय और (६) अद्धासमय ।
चरम से प्रारम्भ कर प्रतिलोमपूर्वक द्रव्यों के वर्णन करते को पश्चात् आनुपूर्वी कहते हैं --यथा-(६) अद्धासमय, (६) पुद्गलास्तिकाय, (४) जीवास्तिकाय, (३) आकाशास्तिकाय, (२) अधर्मास्तिकाय तथा (१) धर्मास्तिकाय ।
जिसमें पूर्वानुपूर्वी तथा पश्चात् अनुपूर्वी का क्रम न हो उसे अनानुपूर्वी कहते हैं । अनानुपूर्वी में क्रम की अस्त-व्यस्तता होती है।
धर्मास्तिकाय आदि षट् द्रव्यों की एक आदि से आरम्भ कर षट् गच्छरूप श्रेणी की जाय ; इसके बाद षट् श्रेणी में स्थित अंकों को परस्पर अभ्यास करके (१४२४३४४४५४६) जो ७२० भंग होते हैं ; उनमें से आदि और अंत के दो भंग न्यून कर देने पर ७१८ भंग शेष रह जाते हैं। चूंकि एक अंक पुर्वानुपूर्वी
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