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पुद्गल-कोश
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है और ७२० वाँ अंक पश्चात् आनुपूर्वी है, अतः ७२० में से २ कम कर देने पर ७१८ अंक अवशेष रह जाते हैं अतः इसे अनानुपूर्वी कहते हैं ।
अथवा औपनिधिका द्रव्यानुपूर्वी तीन प्रकार की होती है, यथा- - (१) पूर्वानुपूर्वी, (२) पश्चात् आनुपूर्वी तथा (३) अनानुपूर्वी ।
पूर्वानुपूर्वी निम्नप्रकार की है - परमाणुपुद्गल, द्विप्रदेशी, तीनप्रदेशी यावत् संख्यातप्रदेशी, असंख्यातप्रदेशी तथा अनंतप्रदेशी स्कंध |
पश्चात् आनुपूर्वी निम्नप्रकार की है -- अनंतप्रदेशी स्कंध, असंख्यात प्रदेशी, संख्यात प्रदेशी, यावत् दसप्रदेशी यावत तीनप्रदेशी, द्विप्रदेशी स्कंध तथा परमाणुपुद्गल ।
परमाणु आदि अनंत द्रव्यों को एक आदि से आरम्भकर अनंत गच्छरूप श्रेणी की जाय ; इसके बाद अनंत श्रेणी को परस्पर गुणन करने से यावत् भंग बन जाते हैं उसमें से आदि और अंत के दो भंग न्यून कर देने पर शेष भंग को अनानुपूर्वी कहते हैं । चूँकि आदि का भंग पूर्वानुपूर्वी है तथा अंत का भंग पश्चात् आनुपूर्वी है अतः आदि और अंत के दो भंग न्यून कर देने पर शेष रहे भंगों को अनानुपूर्वी कहते हैं ।
*१२१३ पुद्गल में भाव
• १ पुद्गल और अनादिपारिणामिक भाव
से कि तं अणाविपारिणामिए ? अणादिपारिणामिए x x x । पोग्गलत्थकाए x x x
- अणुओ० सू २५० । पृ० १११३ टीका - अनादिपरिणामिकस्तु धर्मास्तिकायादीनि, सद्भावस्य स्वतस्तेषामनादित्वादिति ।
पुद्गलास्तिकाय में अनादिपारिणामिक होता है। पुद्गल अपने स्व-स्वरूप में स्थित रहता है अतः पुद्गलास्तिकाय में पुद्गलत्व की अपेक्षा अनादिपारिणामिक भाव होता है ।
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