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पुद्गल-कोश अभयदेवसूरि टोका-संघातभेदलक्षणाभ्यां धर्माभ्यां यो बंधः संबंधः, तदनुवतिनी तदनुसारिणी, संघाताद्यभाव एक द्रव्याद्धायाः सद्भावात्, तदभावे चाऽभावाद्, न पुनर्गुणकालः संघात-भेदमात्रकालसंबद्धः, संघातादिभावेऽपि गुणानामनुवर्तनाद् इति ।
रत्नसिंहसूरि टोका-इह विवक्षितपरमाणुस्कंधस्यापरपरमाणुभिः सह संगमः संघातः, तस्यैव कतिपयपरमाणनां विचटनं भेदः, ततः संघातभेदलक्षणाभ्यां धर्माभ्यां यो बंधः संबंधस्तदनुत्तिनी तदनुसारिणी नित्यमेव द्रव्याद्धा। इह च संघातभेदबन्धानुत्तित्वं द्रव्याद्धाया वैधHद्वारेण ज्ञ यम्, सघाताद्यभाव एव द्रव्याद्धाया सद्भावात् संघातादिसद्भावे चाभावात् । न पुनर्गुणकालो गुणावस्थानाद्धाः संघातभेदमात्रकालसबद्धः संघातादिसद्भावेऽपि गुणानामनुवर्तनादिति ।
जम्हा तत्थन्नत्थ व, दवे खित्तावगाहणासु च । ते चेव पज्जवा संति तो तदद्धा असंखगुणा ॥१२॥
रत्नसिंहसूरि टीका- यस्मात् 'तत्थन्नत्थ व' इति प्रत्येकमभिसंबध्यते, बंधानुलोम्याच्च द्रव्यादीनामन्यथोपन्यासः कृतः। ततश्च यस्मात्तत्रान्यत्र च क्षेत्र तत्रान्यत्र चावगाहनायो, तवान्यन च द्रव्ये इति सर्वत्र चिरावस्थायिस्वात्त एव लभ्यन्ते तस्मात्तदद्ध ति पर्यायावस्थानकालोऽसंख्यातगुणेति ।
द्रव्यकाल-हमेशा ही संघातबंध और भेदबंध के पीछे चलने वाला है और गुणकाल-संघात और भेद मात्र में सम्बद्ध नहीं है ।
विवक्षित परमाणु स्कंध का दूसरे परमाणुओं के साथ संगम होने को संघात कहते हैं तथा उसी विवक्षित परमाणु स्कंध के कतिपय परमाणुओं के हट जाने को भेद कहते हैं अतः संघात और भेदमूलक धर्म से जो बंध होता है उसके पीछे अनुसरण करने वाला नित्य-तुल्य द्रव्यकाल है। यहां पर संघात और भेद के बंध का अनुवर्तन करना-द्रव्यकाल के वैधय॑ के द्वारा जानना चाहिए। चूंकि द्रव्यकाल के सद्भाव में संघात आदि का अभाव होता है और संघातादि के सद्भाव में द्रव्यकाल का अभाव होता है किन्तु गुणस्थानकाल संघात और भेद मात्र काल से संबद्ध नहीं है योंकि संघात आदि का सद्भाव रहने पर भी गुणों का अनुवर्तन होता है ॥११॥
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