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पुद्गल-कोश पुद्गल का स्वभाव गुण-एक रस, एक रूप (वर्ण), एक गंध तथा दो स्पर्श है। इसके विपरीत विभाग गुण है ऐसा जिन आगमों में वर्णन है। .११.०९ द्रव्यकर्म
जं तं दव्वकम्मं णाम ।x x x जाणि दव्वाणि सब्भावकिरियाणिप्फण्णाणि तं सव्वं दव्वकम्मं णाम।
- षट्० खं० ५, ४ । सू १३, १४ । पु १३ । पृ० ४३ टोका-- x x x पोग्गलदव्वस्स वण्ण-गंध-रस-फासविसेसेहि परिणामो सब्भावकिरिया x x x।
जिस द्रव्य की जो सद्भाव या स्वभाव क्रिया है उस क्रिया को 'द्रव्यकर्म' नाम की संज्ञा दी गई है। पुद्गल द्रव्य का वर्ण, गंध, रस, स्पर्श का विशेष रूप से होने वाले परिणाम को द्रव्यकर्म कहा गया है। ११.१० द्रव्ययोग ___x x x णोआगमभावजोगो तिविहो- गुणजोगो, संभवजोगो, जुजणजोगो चेदि। तत्थ गुणजोगो दुविहो-सचित्तगुणजोगो अचित्तगुणजोगो चेदि। तत्थ अच्चित्तगुणजोगो जहा रूव-रस-गंध-फासादीहि पोग्गलदव्वजोगोxxx।
-षट्० खं० ४, २, २ । सू १७५ । टीका । पु १० । पृ० ४३३
नोआगमभावयोग तीन प्रकार का होता है-यथा--(१) गुणयोग, (२) संभवयोग तथा (३) योजनायोग । गुणयोग दो प्रकार का होता है - यथा (१) सचित्त गुणयोग तथा (२) अचित्त गुणयोग ।
अचित्त द्रव्यों के स्व-स्व गुणों में जो योग होता है वह अचित्तगुणयोग । पुद्गल के रूप, रस, गंध, स्पर्श आदि गुणों का जो योग होता है वह पुद्गल द्रव्य अचित्त गुणयोग है।
गुणयोग-जहाँ किसी द्रव्य के गुण या गुणों का योग हो वह गुणयोग। पुद्गल के रूप-रस-गंध-स्पर्श आदि गुणों का जो योग हो वह नोआगम भावपुद्गलद्रव्य अचित्त गुणयोग है।
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