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पुद्गल-कोश टोका-'दसही त्यादि स्पष्टं, नवरं 'अच्छिन्ने' ति अच्छिन्नः-अपृथग्भूतः शरीरे विवक्षितस्कंधे वा संबद्धः चलेत् - स्थानान्तरे गच्छेत् 'आहारेज्जमाणे' त्ति आह्रियमाणः-खाद्यमानः पुद्गलः आहारे वा अभ्यवह्रियमाणे सति पुद्गलश्चलेत्, परिणम्यमानः पुद्गल एवोदराग्निना खलरसभावेन परिणम्यमाणे वा भोजने, उच्छ वस्यमानः-उच्छ वासवायुपुद्गलः उच्छ - वस्यमाने वा-उच्छ् वसिते क्रियमाणे, एवं निःश्वस्यमानो निःश्वस्यमाने वा, वेद्यमानो निर्जीर्यमाणश्च कर्मपुद्गलोऽअथवा वेद्यमाने, निर्जीर्यमाणेच कर्मणि, वैक्रियमाणे वैक्रियशरीरतया परिणम्यमाणः वैक्रियमाणे वा, शरीरे परिचार्यमाणो- मैथुनसंज्ञाया विषयीक्रियमाणः शुक्रपुद्गलादिः परिचायमाणो वा-भुज्यमाने स्त्रीशरीरादौ शुक्रादिरेव, यक्षाविष्टोभूताधिष्टितः यक्षाविष्टे सति पुरुषे यक्षावेशे वा सति तच्छरीरलक्षणः पुद्गलः, वातपरिगतो देहगतवायुप्रेरितः वातपरिगते वा देहे सति बाह्यबातेन वोत्क्षिप्त इति। ___ खङ्ग आदि के द्वारा छिन्न होकर चलित नहीं हुए पुद्गलों को यहाँ अच्छिन्न पुद्गल कहा गया है। ऐसे अच्छिन्न पुद्गल तीन प्रकार से चलायमान होते हैंयथा-(१) जीव के द्वारा आहार रूप में ग्रहण हो रहे पुदगल जीव के द्वारा आकर्षण होने से स्वस्थान से चलित होते हैं ; (२) वैक्रिय किये जा रहे पुद्गल वैक्रियकरण के अधीन होने से चलित होते हैं तथा (३) एक स्थान से दूसरे स्थान में हस्तादि के द्वारा संक्रमण करते हुए पुद्गल चलित होते हैं । ___ अच्छिन्न-जो किसी शस्त्र द्वारा अलग नहीं हुआ हो। शरीरस्थ किसी विवक्षित अच्छिन्न स्कंध के संबंध को छोड़कर स्थानान्तर गमन होना-यह दस प्रकार से होता है-यथा-(१) आहार किये जाते हुए-खाये जाते हुए पुद्गल आहार के समय चलित होते हैं ; (२) जो पुद्गल परिणम्यमाण हो रहे हैं-जो भोजन के पुद्गल उदर में खल, रस आदि भावों से परिणमन हो रहे हैं, (३) उच्छ्वास वायु के पुद्गल उच्छवास होते समय या लेते समय, (४) नि:श्वास किये जा रहे या हो रहे वायु के पुद्गल, (५) वेदन किये जा रहे कर्म पुद्गल, (६) निर्जरा किये जा रहे कर्मपुद्गल, (७) वैक्रिय हो रहे-वैक्रिय शरीर रूप में परिणमन हो रहे वैक्रिय पुद्गल, (८) मैथुन संभोग के समय शुक्रादि पुद्गलों का परिचरण, स्त्री शरीरादि का संभोग करते समय शुक्रादि रूप में निष्कासित पुद्गल, (९) भूतादि द्वारा अधिष्ठित, यक्षादि द्वारा आविष्ट पुरुष में यक्ष का आवेश होने पर उसके
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