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पुद्गल - कोश
-११-१४२ गुरुलघुत्व तथा अगुरुलघुत्व
पोग्गल स्थिकाए णं भंते ! कि गरुए, लहुए, गरुयल हुए, अगरुयल हुए ? गोयमा ! णो गए, जो लहुए, गरुयलहुए वि, अगस्यलहुए वि । से केण ेणं ? गोयमा ! गरुयलहुय दव्वाई पडुच्च णो गरुए, णो लहुए, गरुयल हुए, जो अगरुयल हुए । अगरुयलहुयदव्वाई पडुच्च णो गरुए, जो लहुए, जो गरुयल हुए, अगरुयलहुए ।
-भग० श १ । उ ९ । सू २८७-८८
टीका- 'उफास' त्ति सूक्ष्मपरिणामानि, 'अट्ठफास' त्ति बादराणि । गुरुलघुद्रव्यं रूपि, अगुरुलघुद्रव्यं तु अरूपि, रूपि च इति ।
पुद्गल गुरुलघु तथा अगुरुलघु भी है परन्तु गुरु तथा लघु नहीं है । गुरुलघु द्रव्यों की अपेज्ञा पुद्गल गुरुलघु है परन्तु गुरु, लघु तथा अगुरुलघु नहीं है । अगुरुलघु द्रव्यों की अपेक्षा पुद्गल अगुरुलघु है परन्तु गुरु, लघु तथा गुरुलघु नहीं है ।
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टीकाकार के अनुसार जो आठ स्पर्श वाले बादर - पुद्गल हैं वे गुरुलघु हैं तथा चार स्पर्शवाले जो सूक्ष्म पुद्गल हैं वे अगुरुलघु हैं ।
- १११४.३ पुद्गल परिणाम के भेद
(क) तीन भेद
कइविहा णं भंते! पोग्गला पन्नत्ता ? गोयमा ! तिविहा पोग्गला पत्ता, तंजहा - पओगपरिणया, मीससापरिणया, वीससापरिणया य ।
- भग० श८ । उ १ । सु १
- ठाण० स्था ३ । उ ३ । सू १८६
यथा - प्रयोग परिणत, मिश्र परिणत और
पुद्गल परिणाम के तीन भेद हैंविस्रसापरिणत |
(ख) चार भेद
चविहे पोग्गलपरिणामे - वण्णपरिणामे, गंधपरिणामे, रसपरिणामे,
फासपरिणामे ।
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-ठाण ० स्था ४ । उ १ । सू २६५
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