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पुद्गल-कोश
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दो प्रकार से पुद्गलों का भेदन होता है अर्थात् पुद्गल अलग होते हैं- स्वयं से - स्वाभाविक रूप से अथवा पर- प्रयोग से ।
- १२.०६ परिशटन- परिपतन- विध्वंसन
दोहि ठाणेह पोग्गला परिसडंति, तंजहा - सई वा पोग्गला परिसŚति परेण वा पोग्गला परिसाडिज्जंति, एवं परिवडंति, विद्ध संति ।
- ठाण० स्था २ । उ ३ । सू ८२
टीका - परिपतंति पर्वतशिखरादेरिवेति, परिशटन्ति कुष्ठादेनिमित्तादङ्गुल्यादिवत्, विध्वस्यन्ते – विनश्यन्ति घनपटलवदिति ।
दो प्रकार से पुद्गलों का परिशटन, परिपतन तथा विध्वंसन होता है - स्वयं से अथवा पर से । जैसे— कुष्ठ आदि के कारण अंगुली गल जाती है वैसे पुद्गलों का परिशटन होता है । जैसे - पर्वत के शिखर से वस्तु गिरती है वैसे पुद्गल का परिपतन होता है । जैसे – घन - वादल बिखर जाते हैं वैसे पुद्गल का विध्वंसन होता है ।
१२.०७ क्रिया
१२०७१ सक्रियत्व
(क) आ आकाशादेव धर्मादीनि निष्क्रियाणि भवन्ति । पुद्गलजीवास्तु क्रियावन्तः क्रियेति गतिकर्माह ।
-तत्त्व अ ५ । सू ६ । भाष्य
चलिदा हु । हु पदेसा ॥
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) पोग्गलदव्वम्हि अणू संखेज्जादी हवंति चरिममहक्खंधम्मि व चलाचला होंति
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- गोजी ०
(ग) जीवा पुग्गलकाया सह सक्किरिया हवंति ण य सेसा । पुग्गलकरणा जीवा बंधा खलु कालकरणा दु ॥
० गा ५९२
- पंच० गा ९८ । पृ० १५६
जय टीका - जीवाः पुद्गलकाया “सह सक्किरिया हवंति" सक्रिया भवंति । x x x । खंदा' स्कंदा: स्कंदशब्देनात्र स्कंदाणुभेदभिन्ना द्विधा
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