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पुद्गल-कोश xx x। वाएण हिडिज्जमाणपण्णाणं व एक्कम्हि देसे पोग्गलाणं मेलणं पोग्गलजुडी णाम।
-षट् खण्ड० ५, ५ । सू ८२ । टीका । पु १३ । पृ० ३४८ (ग) संयोगः परमाणूनां संघातादुपजायते ।
-श्लो० अ ५ । सू २७ । पृ० ४३१ अवयवों का अन्तर के बिना अवस्थान संयोग कहलाता है। मात्र समीपता को युति-संयोग कहते हैं। वायु के कारण हिलने वाले पत्तों के संयोग के समान एक स्थान पर पुद्गलों के मिलन को पुद्गलयुति या पुदगल-संयोग कहते हैं। यह पुद्गल-संयोग संघात से उत्पन्न होता है ऐसा आचार्य विद्यानंदि का मत है। द्रव्य, क्षेत्र, काल तथा भाव चारों प्रकार से जीवादि द्रव्यों का संयोग घटित होता है । बंध में पुद्गलों का एकीभाव हो जाता है तथा संयोग या युति में केवल अन्तर रहित समीपता होती है। किसी प्रकार का बंधन नहीं होता है। १२.०४ संबंधन-संघात
दोहि ठाणेहिं पोग्गला साहण्णं ति, तंजहा-सई वा पोग्गला साहण्णं ति परेण वा पोग्गला साहण्णंति ।
-ठाण० स्था २ । उ ३ । सू ८२ टोका-स्वयं वे' ति स्वभावेन वा अभ्रादिष्विव पुद्गलाः संहन्यन्तेसंबध्यन्ते, कर्मकर्तृप्रयोगोऽयं परेण वा पुरुषादिना संहन्यन्ते–संहताः क्रियन्ते, कर्मप्रयोगोऽयं ।
__ दो प्रकार से पुद्गलों का संबंध होता है-यथा-(१) स्वभाव से-बादलादि में पुद्गलों का स्वयं मिलन होता है उसको स्वाभाविक संबंध कहा जाता है । (२) पर-प्रयोग से-पुरुषादि के द्वारा पुद्गलों के संबंध होने को पर-संबंध कहा जाता है। .१२.०५ भेदन
वोहि ठाणेहि पोग्गला भिज्जति, तंजहा-सई वा पोग्गला भिज्जति, परेण वा पोग्गला भिज्जति।
-ठाण० स्था २ । उ ३ । सू ८२
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