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पुद्गल-कोश पुद्गला गृह्यन्ते । ते च कथंभूताः । सक्रियाः। कैः कृत्वा। 'कालकरहि' परिणामनिवर्तककालाणुद्रव्यैः 'खलु' स्फुटम् ।
धर्मास्तिकाय आदि - आकाशपर्यंत-तीनों द्रव्य निष्क्रिय हैं किन्तु पुद्गल और जीव-दोनों द्रव्य क्रियावान् हैं। यहाँ पर क्रिया शब्द से गतिकर्म को ग्रहण किया गया है।
पुद्गल द्रव्य में परमाणु तथा संख्यात, असंख्यात और अनंत अणु के जितने स्कंध हैं वे सभी चल है, किन्तु एक अंतिम महास्कंध चलाचल है क्योंकि उसमें कुछ परमाणु चल हैं और कुछ अचल हैं ।
पुद्गल सहकार से सक्रिय-क्रियावंत होते हैं। स्कंध शब्द से यहाँ पर स्कंध और परमाणु-दोनों प्रकार के पुद्गलों का ग्रहण करना चाहिए। वे काल-द्रव्य के कारण सक्रिय होते हैं क्योंकि कालाणु द्रव्य के गुण-परिणाम का निवर्तक होता है ।
.१२.०७.०२ एजनादि क्रिया
परमाणुपोग्गले णं भंते ! एयइ, वेयइ, जाव ( चलइ, फंदइ, घट्टइ, खुब्भइ, उदीरइ) तं तं भावं परिणमइ ? गोयमा ! सिय एयइ, वेयइ जाव-परिणमइ ; सियं नो एयइ, जाव नो परिणमइ । _ दुप्पएसिए णं भंते ! खंधे एयइ, जाव परिणमइ ? गोयमा! सिय एयइ, जाव परिणमइ, सिय नो एयइ, जाव नो परिणमइ ; सिय देसे एयइ, देसे नो एयइ।
तिप्पएसिए णं भंते ! खंधे एयइ। गोयमा ! सिय एयइ, सिय नो एयइ, सिय देसे एयइ–नो देसे एयइ, सिय देसे एयइ--नो देसा एयंति ; सिय देसा एयंति नो देसे एयइ।
चउप्पएसिए णं भंते ! खंधे एयइ ? गोयमा! सिय एयइ, सिय नो एयइ, सिय देसे एयइ-नो देसे एयइ, सिय देसे एयइ - नो देसा एयंति, सिय देसा एयंति–नो देसे एयइ ; सिय देसा एयंति--नो देसा एयंति । जहा-चउप्पएसिओ तहा पंचपएसिओ, तहा जाव-- अणंतपएसिओ।
-भग० श ५ । उ ७ । सू १ से ४
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