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पुद्गल-कोश
१५१ जीव, पुद्गल को ग्रहण करके, उन ग्रहण किये हुए पुद्गलों को औदारिक-वैक्रियआहारक-तैजस-कार्मण पाँच शरीर रूप में ; श्रोत्रेन्द्रिय-चक्षुरिन्द्रिय-घ्राणेन्द्रिय-रसेन्द्रियस्पर्शेन्द्रिय पाँच इन्द्रिय रूप में ; मनयोग-वचनयोय-काययोग तीन योय रूप में तथा श्वासोच्छवासरूप में परिणमन करता है।
नारकी से यावत् वैमानिक देव तक के जीवदण्डक के सभी जीव पुदगलों को ग्रहण करके यथानुसार शरीर-इन्द्रिय-योग-श्वासोच्छवास रूप में उनका परिणमन करते हैं।
यह जानने की बात है कि सिद्ध जीव किसी भी प्रकार के पुद्गल का ग्रहण नहीं करते हैं।
•१११६ अवस्थान आदि गुण
एगंसि णं पोग्गलत्थिकार्यसि रूविकायंसि अजीवकायंसि चक्किया केई आसइत्तए वा, सइत्तए वा जाव ( चिट्ठइत्तए वा निसीइत्तए वा) तुयट्टित्तए वा।
-भग• श ७ । उ १.। सू ३
___एक अजीब रूपी पुद्गलास्तिकाय पर ही बैठने में, सोने में, खड़े होने में, नीचे बैठने में या आलोटन करने में कोई भी समर्थ है अर्थात् पुदगलास्तिकाय में ही सोना, बैठना, खड़ा होना, नीचे बैठना या आलोटन किया जा सकता है।
ये सब काम धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय तथा आकाशास्तिकाय में नहीं किये जा सकते हैं।
१२ पुद्गल और पर्याय .१२.०१ पर्याय का लक्षण (क) एगत्तं च पुहत्तं च संखा संठाणमेव य । संजोगा य विभागा य पज्जवाणं तु लक्खणं ॥
-उत्त० अ २८ । गा १३
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