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पुद्गल-कोश
१४१ ११.११ द्रव्यस्थान
णोआगमदव्वट्ठाणं तिविहं-जाणुगसरीरभविय-तव्वदिरित्तढाणभेएणं xx x। तवदिरित्तदव्वट्ठाणं तिविहं-सच्चित्त-अचित्त-मिस्स-णोआगमदव्वट्ठाणं चेति x x x। जं तमचित्तदवट्ठाणं तं दुविहं- रूवि-अचित्तदव्वट्ठाणमरूवि-अचित्तदव्वट्ठाणं चेदि । जं तं रूविअचित्तदव्वट्ठाणं तं दुविहंअब्भतरं बाहिरं चेदि। जं तमन्भंतरं [तं] दुविहं-जह वुत्ति-अजहवुत्तियं चेदि। जं तं जहवुत्तिअन्भंतरट्ठाणं तं किण्ह-णील-रुहिर-हालिद्द-सुक्किलसुरहि-दुरहिगंधतित्त-कडुअ-कसायं बिल-महुर-ण्हिद्ध-ल्हुक्ख-सौदु-सुणादिभेदेणं अणेगविहं । जं तमजहवुत्तिरूवि-अचित्तट्ठाणं तं पोग्गलमुत्ति-वण्ण. गंध-रस फास-अणुवजोगत्तादिभेदेण अणेगविहं। जं तं बाहिररूविअचित्त दव्वट्ठाणं तमेगागास-पदेसादिभेदेण असखेज्जवियप्पं ।
-षट् खण्ड ० ४, २, ४ । सू १७५ । पु १० । पृ० ४३५
नोआगमद्रव्यस्थान तीन प्रकार का होता है-- यथा-(१) ज्ञायक शरीर, (२) भावी तथा (३) तद्व्यतिरिक्त ।
तव्यतिरिक्त द्रव्यस्थान तीन प्रकार का होता है-यथा-(१) सचित्त, (२) अचित्त तथा (३) मिश्रनोआगमद्रव्यस्थान। रूपी (पुद्गल ) अचित्तद्रव्यस्थान दो प्रकार का होता है- यथा-(१) आभ्यंतर और (२) बाह्य। आभ्यंतर रूपी अचित्त-द्रव्यस्थान दो प्रकार का होता है-यथा-(१) जहद्वृत्तिक तथा (२) अजहवृत्तिक।
जो जहवृत्तिक आभ्यंतर रूपी द्रव्यस्थान है वह कृष्ण, नील, रक्त, पीत, शुक्ल, सुरभिगंध, दुरभिगंध, तिक्त-कटु-कषाय-आम्ल-मधुर-स्निग्ध-रूक्ष-शीत-उष्ण आदि भेद से अनेक प्रकार का होता है ।
___ जो अजहवृत्तिक आभ्यंतर रूपी अचित्त द्रव्यस्थान है वह पुद्गल का मूर्तत्व, वर्ण, गंध, रस, स्पर्श व उपयोग-हीनता आदि के भेद से अनेक प्रकार का होता है ।
जो बाह्य रूपी अचित्त द्रव्यस्थान है वह एक आकाशप्रदेश आदि ( एक आकाशप्रदेश, दो आकाशप्रदेश यावत् असंख्यातप्रदेश) के भेद से असंख्यात भेद रूप होता है।
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