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पुद्गल-कोश स्वभाव और विभाव पर्यायों द्वारा परिणाम से परिणामी पुदगल द्रव्य है ( जो परिणमन अन्य की अपेक्षा से नहीं होता है वह स्वभाव पर्याय है, जो परिणमन स्कंध रूप से होता है वह विभाव-पर्याय है)। पुदगल अपनी स्वद्रव्यजाति को नहीं छोड़ते हुए स्वाभाविक या प्रायोगिक परिणमन करता है। पुद्गल द्रव्य में हानिवृद्धि तथा संकोच-विस्तार होता है अर्थात् पुद्गल रूप से रूपान्तर, रस से रसान्तर, गंध से गंधान्तर, स्पर्श से स्पर्शान्तर, अवगाहना से अवगाहनान्तर और आकार से आकारान्तर होता है अतः पुद्गल परिणामी है।
.११.१४ परिणाम .११.१४ १ तीनों काल की अपेक्षा पुद्गल-परिणाम ।
एस णं भंते ! पोग्गले तोतमणतं सासयं समयं लुक्खी, समयं अलुक्खी, समयं लुक्खी वा, अलुक्खी वा? पुवि च णं करणे णं अणेगवण्णं अणेगरूवं परिणाम परिणमति ? अह से परिणामे निज्जिन्ने भवइ, तओ पच्छा एगवण्णे एगरूवे सिया? [ सू१]
एस णं भंते ! पोग्गले पडुप्पन्नं सासयं समयं ? एवं चेव, एवं अणागयमणंतंपि।
-भग० श० १४ । उ ४ । सू १-२ टोका-'पुग्गले त्ति' पुद्गलः परमाणुः स्कंधरूपश्च । तीतमणंत सासयं समयं ति। विभक्तिपरिणामादतीते अनन्ते अपरिणामत्वात्, शाश्वते अक्षयत्वात्, समये काले। समयं लुक्खीति । समयमेकं यावत् रूक्षस्पर्शसद्भावाद्रूक्षोः तथा। समय अलुक्खीति। समयमेकं । ग्यावद्रूक्षस्पर्शसभावादरूक्षो, स्निग्धस्पर्शवान बभूव' इदच्च पदद्वयं परमाणौ स्कंधे च संभवति। तथा समयं लुक्खी वा अलुक्खीवत्ति समयमेव रूक्षश्चारूक्षश्च रूक्षस्निग्धलक्षणस्पर्शद्वयोपेतो बभूव। इद च स्कधापेक्षं यतो द्वयणुकादित्कधे देशो रूक्षो देशश्चारूक्षो भवतीति। एवं युगपद्रूक्षस्निग्धस्पर्शसंभवो, वाशब्दो चेह समुच्चयार्थी, एवं रूपश्च सन्नसौ किमनेकवर्णादिपरिणामं परिणमति पुनश्चैकवर्णादिपरिणामः स्यादिति पृच्छन्नाह-पुस्वि च णं करणे णं अणेगवण्णं अणेगरूवं परिणाम परिणमईत्यादि। पूर्व च एकवर्णादिपरिणामात्प्रागेव करणन प्रयोगकरणेन विस्रसाकरणेन वा;
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