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पुद्गल-कोश पुद्गल जीवात्मक रूप लोक के उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य रूप तीन परिणाम-संघात और भेद के द्वारा उत्पन्न होते हैं।
क्रिया और भाव रूप परिणाम द्रव्य की विशेषता है। द्रध्यों में जीव और पुद्गल-इन दो द्रव्यों में क्रिया और भाव-दोनों प्रकार के परिणाम होते हैं। इन परिणामों के द्वारा भेद-संघात-भेद से उनका उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य रूप परिणमन होता है। अवशेष द्रव्यों में केवल भाव परिणाम होता है, जिससे उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य रूप परिणमन निश्चय से होता है। भाव का लक्षण परिणाम मात्र है तथा क्रिया का लक्षण परिस्पंदन है। सभी द्रव्य भाव परिणाम से उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य रूप परिणमन करते हैं। पुद्गल परिस्पंदन स्वभाव से, परिस्पंदन के द्वारा भेद-संघात-भेद से उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य रूप परिणमन करते हैं और क्रियावंत होते हैं तथा जीव भी परिस्पंदनस्वभाव से परिस्पंदन के द्वारा नूतन कर्म-नोकर्म पुद्गल मे भेद-संघात-भेद के द्वारा उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य रूप परिणमन करते हैं तथा क्रियावंत होते है।
•११.०३ नित्यता तथा अवस्थिति (१) रुवाइदग्घयाए न जाइ न य वेइ तेण सो निच्चो।
-विशेभा० गा १९६५ । पूर्वार्ध
(२) पोग्गलत्थिकाए x x x जाव (न ।कयाइ भवइx x x धुवे, णियए, सासए, अक्खए, अव्वए, अवढिए) णिच्चे ।xxx।
-भग० श २ । उ १० । सू ५७
-ठाण० स्था ५ । उ ३ । सू ४४१ भग• टोकाद्रव्यतो शाश्वतः प्रदेशतः अवस्थितः । (३) नित्यावस्थितान्यरूपाणि च । रूपिणः पुद्गलाः ।
-तत्त्व.अ ५ । सू३-४
(४) नित्य -(क) तद्भावाव्ययं नित्यम् ।
-तत्त्व० अ ५ । सू ३० (ख) नित्यग्रहणाद् धर्मादीनां स्वभावादप्रच्युतिराख्यायते।
-सिद्ध० अ ५ । सू ३
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