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पुद्गल-कोश (ग) तत्स्वभावाव्ययत्वाच्च नित्यता सदा समस्त्येव ।
-सिद्ध • अ ५ । सू ४ (५) अवस्थितः-(क) अवस्थितग्रहणादन्यूनानधिकत्वमाविर्भाव्यते,
अनादिनिधनेयत्ताभ्यां न स्वतत्त्वं व्यभिचरन्ति ।
-सिद्ध • अ५ । सू ३ (ख) अव्यतिकीर्यमाणस्वभावतयाऽवस्थितत्वम्।
----सिद्ध० अ ५ । मू ४ पुद्गल नित्य तथा अवस्थित होता है।
नित्य - द्रव्य के स्वभाव की प्रच्युति-व्यय न होना, स्वभाव का सदा तीनों काल में रहना, स्वभाव का समस्त भाव से पाया जाना द्रव्य की नित्यता है।
अवस्थित-द्रव्य की संख्या में हानि-वृद्धि-कम या अधिक न होना, द्रव्य का अनादिनिधन होना, एक द्रव्य का दूसरे द्रव्य के रूप से परिणमन न होना-द्रव्य की अवस्थिति है। .११.०४ अजीवत्व
. (क) अजीवदव्वा णं भंते ! कइविहा पन्नत्ता ? गोयमा ! दुविहा पन्नत्ता, तंजहा - अरूविअजीववव्वा य रूविअजीवदव्वा य ।४००
रूविअजीवदन्वा णं भंते ! कइविहा पन्नत्ता? गोयमा ! चउन्विहा पन्नत्ता, तंजहा–खंधा, खंधदेसा, खंधपएसा, परमाणुपोग्गला।४०२
-अणुओ० सू ४०० तथा ४०२ -भग• श २५ । उ २ । सू २
-पण्ण० प १ । सू ४, ६ ... - (ख) अजीवकाया धर्माधर्माकाशपुद्गलाः। द्रव्याणि जीवाश्च ।
-तत्त्व अ ५ । सू १, २ (ग) दव्वं जीवमजीवं जीवो पुण चेदणोवजोगमओ।
. पोग्गलदव्वपमुह अचेदणं हवदि अजीवं ॥
-प्रव० अ २ । गा ३५
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