________________
पुद्गल-कोश
१२१
जो द्रव्य ऊँचा अथवा तिर्यक् फेंका जाता है परन्तु स्वभाव से ही नीचे गिर जिस द्रव्य की स्वभाव से ही जाता है उसे गुरु द्रव्य कहते हैं, जैसे लेष्टु आदि । जिस द्रव्य की ऊर्ध्वगति होती है उसे लघु द्रव्य कहते हैं, जैसे दीपकलिकादि । ॐ ची अथवा नीची गति नहीं होती परन्तु स्वभाव से ही तिर्यग् गति होती है उसे गुरुलघु द्रव्य कहते हैं । जिस द्रव्य की ऊर्ध्व, नीची, तिर्यग् गति में से कोई भी गति नहीं होती है अथवा जिसकी सर्व जगह गति होती है उसे अगुरुलघु द्रव्य कहते हैं, जैसे आकाश, परमाणु - इस प्रकार व्यवहार नय की मान्यता है ।
निश्चय नय की अपेक्षा एकान्त गुरु स्वभाव वाला कोई भी द्रव्य नहीं है क्योंकि लेष्टु आदि गुरु स्वभाव वाले हैं तो भी उनकी उर्ध्वगति देखो जाती है । एकान्तरूप से लघु द्रव्य भी नहीं है क्योंकि अति लघु स्वभाव वाले वाष्प आदि भी हस्तताडनादि के द्वारा अधोगामी होते देखे जाते हैं इसलिए एकान्तरूप से गुरु अथवा एकान्तरूप से लघु द्रव्य नहीं है । परन्तु निश्चय नय की अपेक्षा इस लोक में औदारिकादि वर्गणा और पृथ्वी पर्वतादि तथा जो कोई भी स्थूल वस्तु है वह सर्व गुरुलघु है और शेष भाषा - श्वासोच्छ्वास- मनोवगंणा आदि तथा परमाणु, द्व्यणुक और आकाशादि सर्वं अगुरुलघु द्रव्य हैं ।
(ख) से कि तं नेगमववहाराणं अणोवणिहिआ दव्वाणुपुथ्वी ? २ पचविहा पन्नत्ता, तंजहा - अट्ठपयपरूवणया ? भंगसमुक्कित्तणया २ भंगोवदंसणया ३ समोआरे ४ अणुगमे ५ । से किं तं नेगमववहाराणं अट्ठपयपरूवणया ? तिपएसिए आणुपुव्वी चउपएसिए आणुपुव्वी जाव दसपएसिए आणुपुव्वी संखेज्जपएसिए आणुपुव्वी असंखिज्जपएसिए आणखी अणतपसिए आणुपुथ्वी, परमाणुपोग्गले अणाणुपुथ्वी, दुपएसिए अवसए, तिपएसिआ आणुपुव्वीओ जाव अनंतपएसियाओ आणुपुव्वीओ, परमाणुपोग्गला अणाणुपुव्वीओ दुपएसिआई अवत्तव्वयाई, से तं गमववहाराणं अट्ठपयपरूवणया ।
- अणुओ, सू ९८-९९ । पृ० १०९८-१०९९
नगम और व्यवहार नय की अपेक्षा से अनुपनिधि द्रव्यानुपूर्वी पाँच प्रकार की कही गयी है - यथा - अर्थपदप्ररूपणा, भंगसमुत्कीर्तना - अर्थपद के भंगों का उत्कीर्तन - भंगोपदर्शनता, समवतार और अनुगम ।
रूप,
नगम और व्यवहार नय की अपेक्षा से अर्थपदप्ररूपणा इस प्रकार है - जो तीन प्रादेशिक स्कंध, चतुः प्रादेशिक स्कंध यावत् दश प्रादेशिक स्कंध, संख्यात प्रादेशिक
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org