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पुद्गल - कोश
निश्चयनय की अपेक्षा परमाणु-अन्त्य परमाणु कारण ही है, सूक्ष्म, नित्य है । उसमें एक वर्ण, एक गंध, एक रस और दो स्पर्श हैं तथा कार्यलिंग के द्वारा वह अनुमेय है । उपर्युक्त लक्षणों से परमाणु निविभाग सिद्ध हो है । जो पुद्गल इन अनेक परमाणुओं से उत्पन्न होता है उसको अंश रूप में स्कंध ही कहा जाता है किन्तु व्यवहार में उसकी अनेकता भी निष्पन्न होती है तथा जो शस्त्रछेदन, अग्निदाह आदि विषय नहीं होता है ; उसे अभी भी इस प्रकार की स्थूलता के द्वारा परमाणु के रूप में व्यवहार होता । अस्तु वह निश्चयनय से स्कंध होते हुए भी व्यवहार नय के द्वारा व्यावहारिक परमाणु कहा जाता है ।
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पुद्गलपरमाणोः यद्यपि निश्चयेन अबहुप्र देशत्वमुक्तं तथापि उपचारेण बहुप्रदेशत्वमस्त्येव यतः पुद्गलपरमाणुः अन्यपुद्गलपरमाणुभिः सह मिलति एककायत्वात् पिण्डीभवति तेनोपचारेण काय उच्यते ।
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- तस्ववृत्ति० भ ५ । सू १
निश्चयनय से एक परमाणु पुद्गल बहुप्रदेशी नहीं है किन्तु उपचार से एक परमाणु पुद्गल भी बहुप्रदेशी कहा जाता है । क्योंकि उसमें अन्य परमाणुओं के साथ मिलकर पिण्डरूप में परिणत होने की शक्ति है ।
(ज) णेगमणयस्स वत्तव्वएण सव्वदव्वं पोग्गलो । आत्त नाम गृहीतम् । आत्ताः गृहीताः आत्मसात्कृताः पुद्गलाः पुद्गलासाः । ते च पुद्गलाः षड्भिः प्रकारैरात्मसात् क्रियन्ते । तंजहा - गहणदो परिणामदो उवभोगदो आहारवो ममत्तोदो परिग्गहारो चेदि । विहासा । तं जहा हत्थेण वा पादेण वा जे गहिदा दंडादि पोग्गलात्ते गहणादो अत्ता पोग्गला । मिच्छत्तादि परिणामेहि जे अपणो कदा ते परिणामवो अत्ता पोग्गला । गंध-तं बोल दिया जे उवभोगे अप्पणी कदा ते उवभोगबो अत्ता पोग्गला । असणपाणावि विहाणेण जे अप्पणी कदा ते आहारदो अत्ता पोग्गला । जे अणुएण परिग्गहिया ते ममत्तोदो अत्ता पोग्गला । जे सायत्तो ते परिग्गहावी अत्ता पोग्गला ।
अधवा, पोग्गलाणमत्ता रूव-रस-गंधफासा दि लक्खणं सरूवं पोग्गलअत्ता णाम । तेसि च अनंतभागवड्डि-असंखेज्जभागवड्डि- संखेज्जभागवड्डिसंखेज्जगुणवड्डि-असंखेज्जगुणवड्डि-अनंतगुणवड्डि त्ति रूवादिणं छव्विहाओ
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