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पुद्गल-कोश
यस्मादप्रदेशानां पुद्गलानां भावादिका भावमादौ कृत्वा वृद्धिरसंख्यगुणिता, आदिशब्दात्कालद्रव्यक्षेत्राणि गृह्यन्ते । अयमर्थ:- भावाप्रदेशेभ्यः कालतोऽप्रदेशाः पुद्गला असंख्यगुणाः । कालाप्रदेशेभ्यो द्रव्या प्रदेशा असंख्यगुणाः । द्रव्याप्रदेशेभ्यः क्षेत्राप्रदेशा असंख्यगुणा इति । 'तो' इति तस्मात्सप्रदेशार्ना पुद्गलानां क्षेत्रादिका क्षेत्रमादौ कृत्वा वैपरीत्येन क्रमशो विशेषपरिवृद्धिर्बोद्धव्या । क्षेत्रतः सप्रदेशेभ्यो द्रव्यतः सप्रदेशा विशेपाधिकाः । द्रव्यतः सप्रदेशेभ्यः कालतः सप्रदेशा विशेषाधिकाः । कालतः सप्रदेशेभ्यो भावतः सप्रदेशा विशेषाधिका इति ।
"सिद्धान्त में इसकी अपेक्षा क्षेत्राप्रदेश पुद्गल असंख्येय गुण हैं क्योंकि वे सब अणु क्षेत्र से अप्रदेश हैं । द्विप्रदेशिकादि पदों में भी प्रदेश परिवर्धित स्थानों में क्षेत्र से अप्रदेशों की एक-एक राशि प्राप्त होती है । इससे एक प्रदेशावगाढ़ पुद्गलों को छोड़कर बाकी की अवगाहनायें क्षेत्रादेश से ही सप्रदेशी पुद्गल असंख्येय गुण होते हैं ।
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तथा वे द्विप्रदेशावगाहनादिक सर्वशेष पुद्गल - अवगाहना स्थान की बहुलता की अपेक्षा असंख्येय गुण होते हैं ।
इससे द्रव्य से सप्रदेशी पुद्गल विशेषाधिक हैं । इसी प्रकार काल से और भाव से विशेषाधिक हैं ।
जिस कारण से - अप्रदेशों की भावादिक वृद्धि असंख्येय गुण है, उससे सप्रदेशों कौ क्षेत्रादि विशेष परिवद्धित है । अर्थात् भाव की अपेक्षा अप्रदेशी पुद्गल से काल की अपेक्षा अप्रदेशी पुद्गल असंख्येयगुण हैं ; काल की अपेक्षा अप्रदेशी पुद्गल से द्रव्य की अपेक्षा अप्रदेशी पुद्गल असंख्येय गुण हैं तथा द्रव्य की अपेक्षा अप्रदेशी पुद्गल से क्षेत्र की अपेक्षा अप्रदेशी पुद्गल असंख्येय गुण हैं । इसलिये क्षेत्र, द्रव्य, काल और भाव की अपेक्षा विपरीत क्रम से सप्रदेशी पुद्गलों की परिवृद्धि समझनी चाहिए :
क्षेत्र की अपेक्षा सप्रदेशी पुद्गल से द्रव्य की अपेक्षा सप्रदेशी पुद्गल विशेषाधिक हैं, द्रव्य की अपेक्षा सप्रदेशी पुद्गल से काल की अपेक्षा सप्रदेशी पुद्गल विशेषाधिक हैं तथा काल की अपेक्षा सप्रदेशी पुद्गल से भाव की अपेक्षा सप्रदेशी पुद्गल विशेषाधिक हैं ।
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