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पुद्गल-कोश
रत्नसिंहरि टीका - एतेषां पूर्वोक्तानां सप्रदेशाप्रदेशानां राशीनां यथासंभवमर्थोपनयमर्थ भावनां कुर्यात् । अर्थभावना तु सप्रदेशाप्रदेशानामल्पबहुत्वविचाररूपा पूर्वव्याख्याने कृतंवेति नेह प्रतन्यते । अत्र लक्षसंख्यया पुद्गलानामल्पबहुत्वविचारणमव्युत्पन्नमति शिष्यव्युत्पादनार्थम् । परमार्थतस्तु तान् पुद्गलाननन्तान् जिनाभिहितान् जानीयादिति ।
- पुद्गल षट्त्रिंशिका
स्थान-स्थान में जिन भावादिक अप्रदेशों की वृद्धि होती है उन्हीं भावादिक सप्रदेशों की हानि होती है । जैसे कि कल्पना से सर्व पुद्गल एक लाख की संख्या वाले हैं उनमें भाव से अप्रदेशी पुद्गल १००० हैं ; काल से अप्रदेशी पुद्गल २००० है, द्रव्य से अप्रदेशी पुद्गल ५००० हैं, क्षेत्र से अप्रदेशी पुद्गल १०००० हैं और भाव से सप्रदेशी पुद्गल ९९००० हैं, काल से सप्रदेशी पुद्गल ९८००० हैं, द्रव्य से सप्रदेशी पुद्गल ९५००० हैं, क्षेत्र से सप्रदेशी पुद्गल ९०००० हैं । इस कारण से भाव से अप्रदेशी से काल से अप्रदेशों में १००० की वृद्धि होती है । वही १००० की संख्या भाव सप्रदेशों से काल सप्रदेशों में हीन होती है । अन्यत्र भी जान लेना चाहिए ।
इसी प्रकार
अथवा क्षेत्रादि अप्रदेशों की क्रम से जितनी हानि होती है वही उतनी ही क्षेत्रादि - सप्रदेशों की परिवृद्धि होती है ।
प्रदेशी और सप्रदेशी - दोनों पुद्गलों की परस्पर हानि और वृद्धि संसिद्ध है ।
जिस कारण वे दोनों प्रकार के पुद्गल चार प्रकार से उपचारित होते हैं उस कारण से उन पुद्गलों की परस्पर वृद्धि और हानि संसिद्ध है । चार प्रकार से अर्थात् भाव, काल, द्रव्य और क्षेत्र से उपचरित होते हैं, विशेषित होते हैं ।
इन राशियों के प्रत्यक्ष ये उदाहरण कहे हैं । बुद्धि से ऐसी कल्पना करनी चाहिए - जितने पुद्गल हैं वे सब मिलकर १००००० एक लाख संख्या वाले हैं अर्थात् कल्पना से — जितने पुद्गल हैं उनकी एक लाख की संख्या समझनी चाहिए ।
क्रमपूर्वक एक, दो, पांच और दस हजार पुद्गल यथोपदिष्ट भावादिक - चारों की भी अपेक्षा अप्रदेशिक हैं ।
नवे, पचानवे, अठानवे, उसी प्रकार निनानवे हजार पुद्गल भावादिक चारों की अपेक्षा विपरीत प्रकार से सप्रदेशिक हैं । अर्थात् क्षेत्रतः सप्रदेशी पुद्गल ९००००
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