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पुद्गल-कोश
परमाणु-स्कंध दूसरे परमाणुओं के साथ संघात होने से, उसी परमाणु-स्कंध का कुछ परमाणुओं के अलग होने से भेद होता है। चूकि पुद्गलों के संघात या पुद्गलों के भेद से उन पुदगलों का जो स्कंध है वह पूर्व की तरह अवगाहनावाला नहीं है, परन्तु संक्षिप्त-स्तोक अवगाहनावाला होता है अर्थात् वहाँ रहने पर द्रव्य का उपरम अर्थात् द्रव्य का परिणमन-लघुता और गुरुता के कारण पूर्वपरिणाम का उच्छेद होता है। संघात के द्वारा स्कंध संक्षिप्त नहीं होता है-ऐसी बात नहीं है क्योंकि सूक्ष्मता होने के कारण उसकी परिणति सुनी जाती है। अस्तु पूर्व में जिस स्थिति में वह द्रव्य था उन स्थिति में द्रव्य का रहना नहीं हुआ। अतः उस प्रकार होने से नियम से उन द्रव्यों की अवगाहना का नाश होता है।
ओगाहद्धा दव्ये, संकोअविकोयओ व अवबद्धा।
न उ दव्वं संकोअणविकोअमित्तंमि संबद्ध ॥८॥ अभयदेवसूरि टीका-अवगाहनाद्धा द्रव्येऽवबद्धा नियतत्वेन संबद्धा, कथम् ? संकोचाद् विकोचाच्च संकोचादि परिहत्य इत्यर्थः। अवगाहना हि द्रव्ये संकोचविकोचयोरभावे सति भवति, तत्सद्भावे च न भवति ; इत्येवं द्रव्ये अवगाहना अनियतत्वेन संबद्धा इत्युच्यते, दुमत्वे खदिरत्वम् इव, इति उक्तविपर्ययमाह-न पुनद्रव्यं संकोचन-विकोचनमात्रे सत्यप्यवगाहनायां नियतत्वेन संबद्धम्, संकोचनविकोचाभ्याम् अवगाहनानिवृत्तावपि द्रव्यं न निवर्तते इत्यवगाहनायां तन्नियतत्वेनाऽसंबद्धम् इत्युच्यते, खविरत्वे द्रु मत्ववत्, इति । अथ निगमनम् ।
रत्नसिंहसूरि टीका-अवगाहनाद्धा अवगाहनावस्थानकालो द्रव्येऽवबद्धा नियतत्वेन संबद्धा, कथं ? संकोचाद्विकोचाच्च परमाणूनां सूक्ष्मपरिणामतयाऽन्योन्यानुप्रवेशः संकोचः, सूक्ष्मपरिणामपरिणतानां तु बादरपरिणामतया भवनं विकोचः, तौ संकोचविकोचौ समाश्रित्येत्यर्थः। अवगाहना हि द्रव्ये संकोचविकोचयोरभावे भवति संकोचविकोचसद्भावे च न भवतीत्येवं द्रव्येऽवगाहना नियतत्वेन संबद्ध त्युच्यते-द्रु मत्वे खदिरत्वमिव नहि यत्र द्रु मत्वं नास्ति तत्र खदिरत्वं प्राप्यत ति। उक्तविपर्ययमाह-न पुनद्रव्यं संकोचनविकोचनमात्रे सत्यपि अवगाहनायां नियतत्वेन संबद्ध। संकोचनेन च अवगाहनानिवृत्तावपि द्रव्यं न निवर्तते इत्यवगाहनायां द्रव्यं नियतत्वेना
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