________________
पुद्गल-कोश
११३ तावतामेव पुद्गलानां सूक्ष्मी-भवनं संकोचः, स्फारीभवनं विकोचः । ततश्च संकोचविकोचाभ्यामवगाहनाया उपरमो भवतीति। एतवताऽवगाहनानिवृतावपि द्रव्यं न निवर्तत इत्युक्तम् ।
संकोच या विकोच के कारण अवगाहना के उपरत होने पर भी जितने द्रव्य, जितने संख्यक पुद्गल स्कंध रूप को पहले प्राप्त कर चुके हैं उतने ही द्रव्यों में बहुत काल तक उन पुदगलों का अवस्थान संभव है। अभिप्राय यह है कि विवक्षित क्षेत्र प्रदेश की व्यापकता ही परमाणुओं की अवगाहना है। उससे अल्पतर या बहुतर क्षेत्र प्रदेशों में उतने ही पुदगलों का सूक्ष्म होना संकोच है तथा विस्तार होनाफैलना विकोच है। इसके बाद संकोच और विकोच के द्वारा अवगाहना से उपरम होता है ; इससे सिद्ध होता है कि अवगाहना की निवृत्ति होने पर भी द्रव्य की निवृत्ति नहीं होती है। अर्थात् अवगाहना की निवृत्ति हो जाने पर भी द्रव्य लम्वे काल तक रहता है।
संघायभेयओ वा, दव्वोवरमे पुणाइ संखित्ते।
नियमा तद्दवोगाहणाहनासो न संदेहो ॥७॥ अभयदेवसूरि टीका–संघातेन, पुद्गलानां भेदेन वा तेषामेव यः संक्षिप्तः-स्तोकावगाहनः स्कंधः-न तु प्राक्तनाऽवगाहनः, तत्र यो द्रव्योपरमो द्रव्याऽन्यथात्वम्, तत्र सति न च संघातेन न संक्षिप्तः स्कंधो भवति, तत्र सति सूक्ष्मतरत्वेनाऽपि तत्परिणतेः-श्रवणात् नियमात् तेषां द्रव्याणाम अवगाहनाया नाशो भवति, कस्माद् एवम् । इत्यत उच्यते।
रत्नसिंहसूरि टीका-परमाणुस्कंधस्यापरपरमाणुभिः सह संगमः संघातः, तस्यैव कतिपयपरमाणूनां विचटनं भेदः, ततः संघाताझेदाद्वा पुनः परमाणनां यः संक्षिप्तः स्तोकावगाहन ( स्कंधो न तु प्राक्तनावगाहन ) स्तत्र सति यो द्रव्योपरमो द्रव्यान्यत्वं लघुतया गुरुतया वा पूर्वपरिणामोच्छेद इत्यर्थ । तत्र सति ( न च संघातेन न संक्षिप्तः स्कंधो भवति, तत्र सति सूक्ष्मतरत्वेनापि तत्परिणते: श्रवणात् ) नियमात्तेषां द्रव्याणामगाहनाया नाशो भवति ।
संघात अथवा भेद से द्रव्य संक्षिप्त होता है। इसके होने के बाद द्रव्य का उपरम होता है तब उस द्रव्य की अवगाहना का नाश नियमतः होता है ।
For Private & Personal Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org