________________
पुद्गल-कोश इति । असंख्याताणुकस्कंधराश्यपेक्षया त्वसंख्येयभाग इति । परमार्थतस्तु परमाणूनामप्यनन्तत्वं वक्ष्यत इति ।
संख्यात प्रदेशवाले स्कंध संख्यातवें भाग में रहते हैं ; लेकिन असंख्यात प्रदेशवाले स्कंध असंख्यातवें भाग में रहते हैं।
पूर्वोक्त सूत्र का प्रामाण्य होने से संख्यात प्रदेशवाले स्कंध के परमाणु संख्यातवें भाग में रहते हैं ; और असंख्यात प्रदेशवाले स्कंध के परमाणु अ संख्यातवें भाग में रहते हैं।
द्विप्रदेशी स्कंध से लेकर संख्यातप्रदेशी स्कंध तक की संख्याताणुक स्कंध राशि की अपेक्षा से परमाणु संख्यातवें भाग में रहते हैं तथा असंख्याताणुक स्कंध राशि की अपेक्षा से असंख्यातवें भाग में रहते हैं। परमार्थतः परमाणुओं की संख्या अनंत कही गई हैं।
सइ वि असंखेज्जपएसियाणं तेसि असंखभागते ।
बाहुल्लं साहिज्जइ फुडमवसेसाहि रासोहि ॥१८॥ अभयदेवसूरि टोका-संख्यातप्रदेशिका-ऽनन्तप्रदेशिकाऽभिधानाभ्याम, इह च संख्यातप्रदेशिकाराशेः संख्यातभागवतित्वात् तेषां स्वरूपतो बहुत्वमवगम्यते, अन्यथा तस्याऽपि असंख्येयभागे, अनन्तभागे वा तेऽभविष्यन् इति ।
रत्नसिंहसूरि टीका-सत्यप्यसंख्यातप्रदेशिकेभ्यः स्कन्धेभ्यः 'सि' इति परमाणूनामसंख्येयभागत्वे बहुत्वं कथ्यते, निश्चितमेव शेषराशिभ्यां संख्यातप्रदेशिकानन्तप्रदेशिकाभिधानाभ्यामिति। अयमभिप्रायः-संख्यातप्रदेशिकराशेरपेक्षया सूत्रे संख्यातभागवृत्तित्वं परमाणूनामुक्तं ततोऽवसीयते तेषां बहुत्वम्। अन्यथा संख्यातप्रदेशिकराशेरपेक्षयाऽसंख्येयभागेऽनंतभागे वा ते परमाणवोऽभबिष्यन्निति ।
वे असंखातप्रदेशी स्कंध असंख्यातवें भाग में अवस्थित हैं तो भी बाकी की राशि अर्थात् संख्यातप्रदेशी स्कंध की राशि तथा अनंतप्रदेशी स्कंध की राशि से स्फुट प्रकार से बाहुल्य कहा जाता है । अर्थात संख्यातप्रदेशवाली और अनंतप्रदेशवालीये दो प्रकार की राशियाँ हैं उससे और यहाँ संख्यातप्रदेशी राशि के संख्यात भाग
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org