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पुद्गल-कोश संखिज्जगुणा। असंखिज्जपएसिया खंधा दन्वट्ठयाए असंखिज्जगुणा, ते चेव पएसट्टयाए असंखगुणत्ति"।
इस प्रकार भाव की अपेक्षा अप्रदेशी पुद्गल से काल की अपेक्षा अप्रदेशी पुद्गल परिणाम की बहुलता से असंख्यगुण सिद्ध होते हैं। इससे द्रव्यादेश से अप्रदेशी पुद्गल असंख्यगुण हैं।
परन्तु परमाणु बहुत किस प्रकार हैं :
लोक में अणु, संख्यातप्रदेश वाले, असंख्यगुणप्रदेश वाले और अनंतप्रदेश वालेये चार प्रकार की-अनंत पुद्गलों की चार राशियाँ हैं, जिससे अनंत प्रदेशवाले अनंत पुद्गलों से प्रदेशार्थ की अपेक्षा अणु अनंतगुणे हैं।
सूत्र में-अनंत प्रदेशवाले अनंत स्कंधों से प्रदेशार्थ की अपेक्षा परमाणु अनंतगुणे हैं। जैसा कि कहा गया है "द्रव्यार्थ की अपेक्षा अनंत प्रदेशवाले स्कंध सबसे थोड़े हैं ; इससे उन्हीं स्कंधों के प्रदेश (प्रदेशार्थ की अपेक्षा) अनंतगुण हैं, इससे द्रव्यार्थ-प्रदेशार्थ की अपेक्षा परमाणु अनंतगुणे हैं ; इससे संख्यात प्रदेशवाले स्कंध-द्रव्यार्थ की अपेक्षा संख्येय गुण हैं ; इससे उन्हीं स्कंधों के प्रदेश (प्रदेशार्थ की अपेक्षा) संख्येय गुण हैं, इससे असंख्यात प्रदेशवाले स्कंध द्रव्यार्थ की अपेक्षा असंख्येय गुण हैं तथा इससे उन्हीं स्कंधों के प्रदेश ( प्रदेशार्थ की अपेक्षा ) असंख्येय गुण हैं।
संखेज्जतिमे भागे संखेज्जपएसियाण वट्ट ति।
नवरमसंखेज्जपएसियाण भागे असंखइमे ॥१७॥ अभयदेवसूरि टीका-'संख्येयतमे भागे' संख्यातप्रदेशिकानाम्, असंख्याततमे भागे असंख्यातप्रदेशिकानाम् अणवो वर्तन्ते-उक्तसूत्रप्रामाण्याद् इति ।
रत्नसिंहसूरि टीका–संख्याताः प्रदेशाः परमाणवो येषां स्कंधानां ते तथा, तेषां संख्येयतमे भागे वर्तन्ते परमाणव इति। असंख्याताः प्रदेशाः परमाणवो येषां ते तथा, तेषां चासंख्येयतमे भागे वर्तन्ते, परमाणव इति उक्तसूत्रप्रामाण्यात् । अयमाशयः यथा किल कल्पनया शतस्य संख्येयतमो भागो विशतिः, शतस्यैवासंख्येयतमो दश, शतस्येवानन्ततमो भागः पञ्च । एवमिहानया दिशा द्वयणुकादिस्कंधेभ्यः प्रभृति संख्याताणुकस्कन्धान यावद् यः संख्याताणुकस्कंधराशिस्तवपेक्षया परमाणवः संख्येयतमे भागे वर्तन्त
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