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पुद्गल-कोश
माकन्दीपुत्रों की कथा में रत्नदेवी द्वारा उनके शरीर में शुभ पुद्गलों के प्रवेश कराने का कथन है |
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·०४ १०३ सुहुमपरमाणुपोग्गलाणं ( सूक्ष्मपरमाणुपुद्गल )
- जंबू ० वक्ष २ | सू १९ । पृ० ५४३
मूल - अनंताणं सुहुमपरमाणुपोग्गलाणं समुदय समिइसमागमेणं ववहारिए परमाणू निष्फज्जइ ।
व्यावहारिक परमाणु की निष्पन्नता - उत्पत्ति का वर्णन करते हुए कहा गया है कि अनन्तानन्त सूक्ष्म परमाणु पुद्गलों के समुदयसमिति - समागम से - एकीभाव होने से व्यावहारिक परमाणु उत्पन्न होता है । यहाँ अप्रदेशी परमाणु को अन्य व्यावहारिक परमाणुओं से सूक्ष्म होने के कारण सूक्ष्म विशेषण दिया गया है । '०४·१०४ सुहुमसांपराइयचरिमसमयपरमाणुपोग्गलवखंधकालो (सूक्ष्मसांपरायिकचरमसमयपरमाणुपुद्गलस्कंधकाल )
- कसापा० गा २२ । टीका ३५७ । भाग ३ । पृ० १९२
कालो
xxx अथवा सुहुमसां पराइयचरिमसमयपरमाणुपोग्गलवबंध एया ट्ठिदी णाम । तस्स एगसमयणिप्पण्णत्तादो । x x x ।
अथवा सूक्ष्मसांपरायिक गुणस्थान के अंतिम समय में पुद्गलपरमाणुओं के स्कंध ( कर्मपुद्गलस्कंध ) का जो काल है वह एक स्थिति कहलाती है क्योंकि यह स्थिति एक समय में निष्पन्न होती है ।
०५ परिभाषा के उपयोगी पाठ
०५१ पुद्गल की परिभाषा के उपयोगी पाठ
(१) कइविहा णं भंते ! सव्वदव्वा पन्नत्ता ? गोयमा ! छव्विहा सव्वदव्वा पन्नत्ता, तंजहा - धम्मत्थिकाए, अधम्मत्थिकाए जाव ( आगासत्थिकाए, पोग्गलत्थिकाए, जीवत्थिकाए ) अद्धासमए ।
- भग० श २५ । उ ४ । प्र ४ । पृ० ८६१
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