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पुद्गल-कोश
६१ _ विश्लेषण-गंधादि द्रव्यों की अपेक्षा भाषा के द्रव्य सूक्ष्म हैं, विशेष संख्यावाले और वासित करनेवाले हैं। श्रोत्रेन्द्रिय विषय को ग्रहण करने में घ्राणादि इन्द्रियों की अपेक्षा विशेष पटु होने के कारण स्पर्शमात्र से ग्रहण करती है। गंधादि द्रव्य भाषादि द्रव्य की अपेक्षा स्थूल, अल्प और अवासित स्वभाव वाले हैं तथा विषय को ग्रहण करने में श्रोत्रेन्द्विय की अपेक्षा घ्राणादि इन्द्रियाँ अपटु हैं अतः बद्धस्पृष्ट होने से ही ग्रहण करती हैं।
.०७.२.८ पर्यायातीत पुद्गल तथा अपर्यायातीत पुद्गल दुबिहा पोग्गला पन्नत्ता, तंजहा–परियादितच्चेव अपरियादितच्चेव ।
-ठाण० स्था २ । उ ३ । सू ८२ । पृ० १९२ पुद्गल के दो भेद होते हैं, यथा-पर्यायातीत पुद्गल तथा अपर्यायातीत पुद्गल ।
टीका-'परियाइय' त्ति विवक्षितं पर्यायमतीताः पर्यायातीताः पर्यात्ता वा-सामस्त्यगृहीताः कर्मपुद्गलवत्, प्रतिषेधः सुज्ञानः।
विवक्षित पर्याय को छोड़े हुए पुद्गलों को पर्यायातीत पुद्गल कहा जाता है अथवा कर्मपुद्गल की तरह समस्त रूप में ग्रहण किये हुए पुद्गलों को पर्यायातीत पुदगल कहा जाता है। समस्त रूप में ग्रहण नहीं किये हुए पुद्गलों को अपर्यायातीत पुद्गल कहा जाता है ।
.०७.२९ आत्त पुद्गल तथा अनात्त पुद्गल दुविहा पोग्गला पन्नत्ता, तं जहा-अत्ता चेव अणत्ता चेव ।
-ठाण० स्था २ । उ ३ । सू ८२ । पृ० १९२
पुद्गल के दो भेद होते हैं, यथा-आत्त पुद्गल तथा अनात्त पुद्गल ।
टोका-आत्ताः गृहीताः स्वीकृता जीवेन परिग्रहमानतया शरीरादितया वा।
आत्ता-अर्थात् जीव के द्वारा जो पुदगल परिग्रह मात्र रूप में ग्रहण किये जाते हैं वे आस पुद्गल हैं अथवा शरीरादि रूप में ग्रहण किये हुए पुद्गलों को आत्त पुद्गल कहा जाता है । इसके विपरीत अनात्त पुद्गल जानना चाहिए ।
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