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पुद्गल-कोश (च) रूवीअजीवदव्वा णं भंते। कइविहा पन्नत्ता? गोयमा ! चउविहा पन्नत्ता,तं जहा-खंधा, खंधदेसा, खंधप्पएसा, परमाणुपोग्गला।
-अणुओ० । सू ४०२ । पृ० ११४२ खंधा य खंधदेसा खंधपदेसा य होंति परमाणू । इदि ते चदुवियप्पा पुग्गलकाया मुणेयव्वा॥
-पंच० गा ७४ (ज) खंध देस पएसा, परमाणू पुग्गला चउहरूवी।
-कर्म० भाग १ । गा १५ । टीका पुद्गल के चार प्रकार हैं, स्कंध, स्कंधदेश, स्कंधप्रदेश और परमाणु । .०७.५ पांच भेद
(क) रूविअजीवपन्नवणा चउविहा पन्नत्ता, तं जहा-खंधा, खंधदेसा, खंधप्पएसा, परमाणुपोग्गला। ते समासओ पंचविहा पन्नत्ता तंजहा-वण्णपरिणया, गंधपरिणया, रसपरिणया, फासपरिणया, संठाणपरिणया।
-पण्ण० प १। सू ६, ७ । पृ० २६५
-जीवा० प्रति १ । सू ५ । पृ० १०५ स्कन्धादि पुद्गल यथायोग्य रूप से-संक्षेप में पांच प्रकार के कहे गये हैं। यथा-(१) वर्णपरिणत- वर्ण रूप में परिणाम को प्राप्त हुए पुद्गल-वर्णपरिणाम वाले ; (२) गंधपरिणत-गंध रूप में परिणाम को प्राप्त हुए पुद्गल-गंध परिणाम वाले ; (३) रस परिणत-रस रूप में परिणाम को प्राप्त हुए पुद्गल-रस परिणाम वाले ; (४) स्पर्शपरिणत-स्पर्श रूप में परिणाम को प्राप्त हुए पुद्गल-स्पर्श परिणाम वाले ; (५) संस्थान परिणत-संस्थान रूप में परिणाम को प्राप्त हुए पुद्गल-संस्थान परिणाम वाले । .०७.६ छः भेद .०७.६.१ पृथ्वी-जल आदि भेद (क) पुढवी जल च छाया चरिदियविसयकम्मपरमाण । छविहभेयं भणियं पोग्गलदच्वं जिणवरेहि ॥
-गोजी० गा ६०१
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