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पुद्गल-कोश टोका-प्रयोगपरिणताः—जीवव्यापारेण तथाविधपरिणतिमुपनीताः, यथा पटादिषु कर्मादिषु वा, 'मीस' त्ति प्रयोगविस्रसाभ्याम् परिणताः, यथा-पटपुद्गलाः एवं प्रयोगेण पटतया विस्रसापरिणामेन चाभोगेऽपि पुराणतयेति, विस्त्रसा-स्वभावः तत्परिणता अर्मेन्द्रधनुरादिवदिति ।
-ठाण० स्था ३ । उ ३ । सू १८६ । टीका पुद्गल के तीन प्रकार हैं, यथा-(१) प्रयोगपरिणत पुद्गल-जो जीव के व्यापार से तथाविध परिणति को प्राप्त हुए प्रयोग परिणत पुदगल हैं। जैसेवस्त्रादि में अथवा कर्मादि में जीव के व्यापार की सापेक्षता है ।
(२) मिश्रपरिणत पुद्गल-प्रयोग और स्वभाव दोनों के मिश्रण से परिणाम को प्राप्त हुए पुद्गल मिश्रपुद्गल कहलाते हैं। जैसे-वस्त्र के पुद्गल ही प्रयोग परिणाम से वस्त्र रूप से जोर विरसा परिणाम से भोग नहीं करने पर भी जीर्ण (पुराने) रूप से परिणत होते हैं, अत: इस प्रकार के पुद्गलों को मिश्रपरिणत पुद्गल कहते हैं।
(३) विस्रसापरिणत- स्वभाव से परिणत हुए बादल, इन्द्रधनुषादि पुद्गलों को विस्रसापरिणत पुद्गल कहते हैं। •०७४ चार भेद
(क) जे रूवी ( अजीव ) ते चउन्विहा पन्नता तं जहा-खंधा, खंधदेसा, खंधपएसा, परमाणुपोग्गला।
-भग० श २ । उ १० । प्र ६६ । पृ० ४३५ (ख) से कि तं रूविअजीवाभिगमे ? रूविअजीवाभिगमे चउन्विहे पन्नत्ते, तं जहा—खंधा, खंधदेसा, खंधप्पएसा, परमाणुपोग्गला।
-जीवा० प्रति १ । सू ५। पृ० १०५ (ग) से कि तं रूविअजीवपन्नवणा? रूविअजीवपन्नवणा चउविहा पन्नत्ता, तं जहा–खंधा, खंधदेसा, खंधप्पएसा, परमाणुपोग्गला।
-पण्ण० प १ । सू ६ । पृ० २६५ (घ) खंधा य खंधदेसा य, तप्पएसा तहेव य। परमाणुणो य बोद्धव्वा, रूविणो य चउविहा ॥
-उत्त• अ ३६ । गा १०
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