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पुद्गल-कोश परमाणुपुद्गल जीव के परिभोग में नहीं आता है क्योंकि यह जीव द्वारा अग्राह्य है।
परमाणुपुद्गल की उत्कृष्ट गति एक समय में लोक के पूर्व चरमान्त से पश्चिम चरमान्त में, पश्चिम चरमान्त से पूर्व चरमान्त में, दक्षिण चरमान्त से उत्तर चरमान्त में, उत्तर चरमान्त से दक्षिण चरमान्त में, ऊपर के चरमान्त से नीचे के चरमान्त में, नीचे के चरमान्त से ऊपर के चरमान्त में होती है। परमाणुपुद्गल की गति अनुश्रेणी होती है।
परमाणुपुद्गल सादि पारिणामिक भाव है, अनादि पारिणामिक भाव नहीं है । परमाणुपुद्गल की स्थिति जघन्य एक समय तथा उत्कृष्ट असंख्यातकाल की है ।
वे (स्कंध और परमाणु ) प्रवाह की अपेक्षा से अनादि अनन्त हैं तथा स्थिति की अपेक्षा से सादि-सांत हैं । '०५३ स्कंध पुद्गल की परिभाषा के उपयोगो पाठ
रूविणो चेवऽरूवी य अजीवा दुविहा भवे । अरूवी दसहा वुत्ता रूविणी वि चउन्विह ॥ खंधा य खधदेसा य तप्पएसा तहेव य । परमाणुणो य बोद्धव्वा रूविणो य चविहा॥
-उत्त० अ ३६ । गा ४, १० । पृ० १०४९-५० (२) एगत्तेण पुहुत्तेण खंधाय य परमाणु य ।
-उत्त० अ ३६ । गा ११ पूर्वार्ध । पृ० १०५० (३) परमाणुपोग्गला णं भंते ! कि संखेज्जा, असंखेज्जा, अणंता ? गोयमा ! नो संखेज्जा, नो असंखेज्जा, अणंता, एवं जाव अणंतपएसिया खंधा।
__ -भग० श २५ । उ ४ । प्र३८ । पृ. ८६४ (४) एस णं णते ! पोग्गले' अतीतं, अणंत, सासयं समयं भुवीति, वत्तन्वं सिया? हंता, गोयमा ! एस गं पोग्गले अतीतं, अणंतं, सासयं समयं भुवीति वत्तव्वं सिया। एस णं भंते ! पोग्गले पडुप्पणं सासयं समयं भवतीति वत्तव्वं सिया ? हंता, गोयमा! तं चेव उच्चारेयव्वं । एस णं १. पोग्गलेति परमाणुरुतरत्रस्कंधग्रहणात्-वृत्ति
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