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•०० शब्द विवेचन •०१ शब्द व्युत्पत्ति .०१.१ प्राकृत में 'पोग्गल' शब्द की व्युत्पत्ति
रूप-पोग्गल, पुग्गल लिंग-पुल्लिग (पोग्गला-भग. श ८ । उ १)
नपुंसक लिंग (पोग्गलाई-सूर० प्रा ९) धातु- पूर+/गल
Vपूर-पूर्यते पूर्ण होना, मिलना।
Vगल-गलति= निकलना, अलग होना। संस्कृत के 'पुद्गल' शब्द से उ का ओकार, द् का लोप और ग का द्वित्व होने से प्राकृत का 'पोग्गल' शब्द बनता है ।
'ओत्संयोगे' हेम० ८।१।११५–इस सूत्र से पुद्गल शब्द के संयुक्त वर्णों के पूर्ववर्ती उकार का ओकार हो गया है । अर्थात् 'पु' का 'पो' हो गया है।
'सर्वत्र लवराम'- वर० ३।३-इस सूत्र की तरह संयुक्त ब्यंजन के आद्यक्षर द् का लोप तथा अंत्याक्षर ग का द्वित्व होने से पुद्गल का पुग्गल बना और 'ओत्संयोगे' सूत्र से पुग्गल का 'पोग्गल' हो गया।
'०१२ पाली में 'पुग्गल' शब्द की व्युत्पत्ति
रूप - पुग्गल
लिंग -पुल्लिग धातु-/पु+/गल>पुग्गल
पाली टीकाकारों ने पुग्गल की व्युत्पति विचित्र रूप से की है। 'पु'का अर्थ नरक तथा 'गल' का अर्थ गलना, सड़ना> कष्ट पाना । ___ 'पुन ति वच्चति निरयो, तस्मिं गलन्ति इति पुग्गला'। 'पु'को नरक कहा जाता है, उसमें जो गले वह पुद्गल । ____ संस्कृत शब्द पुद्गल से प्राकृत शब्द पुग्गल की तरह पाली शब्द पुग्गल की व्युत्पत्ति समझनी चाहिए।
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