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पुद्गल - कोश
नोआगम पुद्गलद्रव्यनिक्षेप - यहाँ पर जीव, धर्म, अधर्मं, काल और आकाश द्रव्य वर्गणाओं को बाद देकर पुद्गलद्रव्य का ही निक्षेप किया गया है अत: इसे नोआगमपुद्गल द्रव्यनिक्षेप कहा गया है ।
निक्षेप - वह प्रकरण या वर्णन जिससे पदार्थ का निश्चय होता है । जिससे आगमपुद्गल द्रव्य का निश्चय किया जा सके वह नोआगमपुद् गलद्रव्यनिक्षेप । ·०४.३४ णोकम्मपोग्गला ( नोकर्मपुद्गल )
- षट्० खं० ४ । २ । सू १०, १ टीका । पु १२ | पृ० ३०२ कर्म वर्गणा के अतिरिक्त जो भी पुद्गलों की वर्गणा है वह नोकर्मपुद्गल । ·०४ ३५ तज्जोगपोग्गलमयं ( तद्योग्य पुद्गलमय )
विशेभा० गा ३५२५
यहाँ मन का विवेचन है । जिससे मनन किया जाय वह मन । द्रव्यतः वह मनन द्रव्यमन से होता है और यह द्रव्यमन अपने योग्य पुद्गलमय होता है ।
इसी प्रकार गाथा ३५२६ में द्रव्यवचन योग्य पुद्गलों का कथन है तथा गाथा ३५२७ में काययोग्य पुद्गलों का कथन है ।
०४.३६ तेयापोग्गलपरियट्टे ( तेजसपुद्गलपरावत )
भग० श १२ । ४ । प्र १४ । पृ० ६६० तेजस शरीर में वर्तता हुआ जीव तैजस शरीर के प्रायोग्य द्रव्यों को समस्त भाव से तैजस-शरीर रूप में जितने काल में ग्रहण कर लेता है उसे तैजसपुद्गलपरावतं कहते हैं ।
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०४ ३७ तेयापोग्गल परियट्टनिव्वत्तणाकाल ( तेजस पुद्गलपरावर्त निवंतंना
काल )
- भग० श १२ । ३४ । प्र ३० । पृ० ६६२
तेजस पुद्गल परावर्त के निष्पन्न होने का काल - इसमें अनन्त उत्सर्पिणीअवसर्पिणी जितना काल लग जाता है ।
०४ ३८ तेयासरीरपोग्गलाणं ( तेजसशरीरपुद्गल )
- षट्० खं० ५ । ६ । सू ४६ टौका | पु१४ । पृ० ४२ जो पुद्गल जीव के तैजसशरीर रूप में परिणत हुए हैं वे तंजसशरीरपुद्गल ।
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