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पुद्गल-कोश •०४.६२ पोग्गलत्थिकाए (पुद्गलास्तिकाय )
-भग० श २ । उ १० । प्र ५७ । पृ० ४३४ टीका-'अस्ति' इत्ययं निपातः कालत्रयाभिधायी, ततोऽस्तीति सन्ति, आसन्, भविष्यन्ति च ये कायाः प्रदेशा राशयः, ते अस्तिकाया इति ।
पुदगलास्तिकाय' 'अस्ति' शब्द त्रिकालवर्ती निपात है- भूत में भी था, वर्तमान में भी है, भविष्यत् में भी रहेगा। काय अर्थात बहुप्रदेशी है। पुद्गलास्तिकाय अर्थात् पुद्गल त्रिकालवर्ती है तथा बहुप्रदेशी है।
किसी-किसी टीकाकार ने 'अस्ति' शब्द का अर्थ त्रिकालवर्ती न करके प्रदेश अर्थ किया है तथा काय का अर्थ समूह किया है। अतः इस अपेक्षा से पुद्गलास्तिकाय का अर्थ पुद्गल प्रदेशों का समूह किया जाता है। .०४.६३ पोग्गलत्थिकायपएसे (पुद्गलास्तिकायप्रदेश)
-भग० श ८ । उ १० प्र १७ ।पृ० ५७१ टीका-पुद्गलास्तिकायस्य एकाणुकाऽऽदिपुद्गलराशेः प्रदेशो निरंशोऽशः पुद्गलास्तिकायप्रदेशः।
परमाणुओं के एकीभाव होने से मिलने से (परमाणुप्रचयात्मका: स्कंधाः ) पुद्गलास्तिकाय का स्कंध बनता है। उस पुद्गलस्कंध के निरंश-अविभाज्य अंश को पुद्गलास्तिकायप्रदेश (प्रदेशास्तस्यैव निरंशा अंशा ) कहते हैं । .०४.६४ पोग्गलदव्व (पुद्गलद्रव्य)
– अभिधा० भाग ५ । पृ० ११०७ पुद्गल एक द्रव्य है अर्थात् धर्मास्तिकायादि छः द्रव्यों में पुद्गल का भी द्रव्य रूप में कथन है । .०४.६५ पोग्गलदव्वप्पगेहिं ( पुद्गलद्रव्यात्मक )
-प्रव० अ १ । गा ३४ जो पुद्गल द्रव्यस्वरूप हो वह पुद्गलद्रव्यात्मक ।
यहां जिन भगवान् के पुद्गलद्रव्यात्मक वचनों द्वारा दिए गये उपदेशों का वर्णन है और उसे श्रुत (द्रव्यश्रुत ) भी कहा गया है ।
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