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पुद्गल-कोश जीव की अपेक्षा जीव को पुद्गल भी कहा गया है। अतः संसारी और सिद्ध दोनों प्रकार के जीवों को पुद्गल कहा गया है । .०४.५१ पोग्गलकम्मस्स (पुद्गलकर्म)
-नियम• अधि १ । गा १८ कत्ता भोत्ता आदा, पोग्गलकम्मस्स होदि ववहारो।
कम्मजभावेणादा, कत्ता भोत्ता दु णिच्छयदो ॥ पुदगलकर्म-ज्ञानावरणीयादि द्रव्यकर्म ।
यह आत्मा व्यवहारनय से पुद्गल कर्म का कर्त्ता और भोक्ता होता है और यही आत्मा (अशुद्ध) निश्चय नय से कर्म से उत्पन्न हुए भाव (राग द्वेष) का कर्ता और भोक्ता है। •०४.५२ पोग्गलकरण (पुद्गलकरण )
-भग० श १९ । उ ९ । प्र ६ । पृ० ७८९ करण-क्रिया।
पुद्गल की उस क्रिया को जिससे पुद्गल वर्ण, रस, गंध, स्पर्श तथा संस्थान में परिणमन करता है-पुद्गलकरण कहा जाता है । .०४.५३ पोग्गलकायं (पुद्गलकाय)
–ठाण. स्था ७ । सू० ५४२ । पृ० २७७ पृथ्वीकायादि की तरह पुद्गलों को भी काय अर्थात् जीव संज्ञा देना ।
"सर्व जीव है" ऐसा मत प्रतिपादन करने वाला विभंगज्ञानी जीव पृथ्वीकाय आदि की तरह पुद्गलों को भी जीव मानकर उनको भी 'पुदगलकाय' कहता है क्योंकि वह मन्द वायुकाय के स्पर्श से पुद्गल राशि को कम्पन, स्पन्दन आदि एजन क्रियाओं को करते हुए देखता है अतः वह पुद्गल को जीव मानकर 'पुद्गलकाय' कहता है। .०४.५४ पोग्गलगई ( पुद्गलगति)
-पण्ण ० प १६ । सू १११० । पृ० ४३३ मूल से कि तं पोग्गलगई ? पोग्गलगई जण्णं परमाणुपोग्गलाणं जाव अगंतपएसियाणं खंधाणं गई पवत्तइ । से तं पोग्गलगई।
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