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पुद्गल-कोश .०४.२४ कम्मपोग्गलो ( कर्मपुद्गल )
-षट्० खं० ४ । २ । ४ । सू २२ टीका । पु १० । पृ० ५४ कर्मवर्गणा के पुद्गलों को कर्मपुद्गल कहते हैं । •०४ २५ कम्मसरूवेणावट्ठिवपोग्गलाणमण्णपयडिसरूवेण ( कर्मस्वरूपेण अवस्थितपुद्गलानामन्यप्रकृतिस्वरूपेण )
-कसापा० । गा० २३ । टीका १ । भाग ८ । पु० २ x x x दुविहो बंधो अकम्मबंधो कम्मबंधो चेदि। तथा कम्मबंधो णाम कम्मइयवग्गणादो अकम्मसरूवेणावट्टिदपदेसाणं गहणं । कम्मबंधो णाम कम्मसरूपेणावट्टिदपोग्गलाणमण्णपयडिसरूवेण परिणमणं ।xxx।
यहाँ बंध दो प्रकार का बताया गया है - कर्मबंध और अकर्मबंध । जहाँ कार्मण वर्गणाओं में से अकर्म रूप से स्थित पुद्गलों का ग्रहण होता है वह अकर्मबंध है और जहाँ कर्मरूप से स्थित कर्म-पुद्गलों का अन्य प्रकृति रूप से परिणमन होता है वह कर्मबंध है। .०४.२६ खेत्त-भव-काल-पोग्गलट्ठिदिविधागोदयखयो ( क्षेत्र-भव-कालपुद्गल-स्थितिविपाकोदयक्षय )
कसापा० गा ६२ । चू । भाग १० । पृ० १८७ क्षेत्र, भव, काल और पुद्गलों का निमित्त पाकर स्थितिविपाक से ( कर्मों का ) उदय होकर क्षय होना।
x x x कम्मेण उदयो कम्मोदयो। अपक्कपाचणाए विणा जहा कालजणिदो कम्माणं दिदिक्खएण जो विवागो सो कम्मोदयो त्ति भण्णदे । सो वुण खेत्त-भव-काल-पोग्गलटिदिविवागोदयखयो त्ति एदस्स गाहापच्छद्धस्स समुदायत्थो भवदि ।xxx। टीका ४१४
कर्म रूप से उदय का नाम कर्मोदय है। अपक्व पाचन के बिना कर्मों का स्थिति क्षयसे जो यथाकाल जनित विपाक होता है वह कर्मोदय कहा जाता है। परन्तु वह क्षेत्र, भव, काल और पुद्गलों को निमित्त पाकर स्थितिविपाक से उदयक्षय रूप होता है। .०४.२७ घाणपोग्गलाणं ( घ्राणपुद्गल )
-ओव० सू १७० । पृ० ३६
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