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पुद्गल-कोश .०४.१० आणापाणुपोग्गलपरियट्टे ( आनप्राणपुद्गलपरावर्त )
-भग० श १२ । उ ४ । प्र १४ । पृ० ६६१ आन-प्राणपुद्गलपरावर्त-पुद्गल परावर्त के सातों भेदों में से एक भेद है। श्वासोच्छवास लेता हुआ जीव श्वासोच्छ्वास के प्रायोग्य द्रव्यों को समस्त भाव से श्वासोच्छवास रूप में जितने काल में ग्रहण करता है उसे आन-प्राणपुद्गलपरावतं कहते हैं। .०४.११ उत्तमपोग्गले ( उत्तमपुद्गल )
--सूय० श्रु १ । अ १३ । गा १५ । पृ० १३० टोका-'उत्तमपुद्गल आत्मा'।
यहाँ 'पुद्गल' शब्द का टीकाकार ने आत्मा अर्थ किया है। 'भगवई' में पुद्गल शब्द जीव के अभिवचनों में भी आया है। 'उत्तमपोग्गले' अर्थात् उत्तम-श्रेष्ठ आत्मा। यहाँ प्रज्ञा, तप, उच्चता, गोत्र तथा आजीविका ( भिक्षा ) के साधनों का मद न करने वाले भिक्षु को पंडित तथा उत्तम आत्मा कहा गया है। टीकाकार ने उत्तम आत्मा का अर्थ 'महतोपि महीयान्' भी किया है। .०४.१२ उदगपोग्गल ( उदकपुद्गल )
-ठाण० स्था ३ । उ ३ । सू१७६ । पृ. २१२ टीका-उदकप्रधानं पौद्गलं-पुद्गलसमूहो मेघ इत्यर्थः, उदकपोद्गलं
पुद्गलसमूहो मेघ इत्यर्थः । जिन पुद्गलों में उदक-जल की प्रधानता हो वे उदकपुद्गल, यथा-मेघ । . .०४.१३ उदयगदपोग्गलक्खंधो ( उदयगतपुद्गलस्कंध )
-षट् खण्ड ४ । २ । ३ । सू ३ टीका । पु १० । पृ. १६ उदयगतपुद्गलस्कंध।
जो पुद्गल स्कंध अर्थात कर्मपुद्गल स्कंध उदय में आया हुआ है वह उदयगतपुद्गलस्कंध । .०४ १४ उवड्डपोगलपरियट्ट ( उपापुद्गलपरावर्त )
-कसापा• गा २६ । टीका ९५ । भाग ८ । पृ० ३९ xxx। "उवड्डपोग्गलपरियटुं" इदि उत्ते पोग्गलपरियट्टकालस्सद्ध देसूणं घेत्तव्वं, अद्धपोग्गलपरियट्टस्स समीवं उबड्डपोग्गलपरियट्टमिदीगहणादोxxxi
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