Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 3
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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प्रमेयकमलमार्तण्डे "प्रत्येकसमवेतार्थविषया वाथ गोमतिः । प्रत्येकं कृत्स्नरूपत्वात्प्रत्येक व्यक्तिबुद्धिवत् ।।१॥"
[ मी० श्लो० वनवाद श्लो० ४६ ] प्रयोगः–येयं गोबुद्धिः सा प्रत्येकसमवेतार्थविषया प्रतिपिण्डं कृत्स्नरूपपदार्थाकारत्वात् प्रत्येकव्यक्तिविषयबुद्धिवत् । एकत्वमप्यस्य प्रसिद्धमेव ; तथाहि-यद्यपि सामान्यं प्रत्येकं सर्वात्मना परिसमाप्तं तथापि तदेकमेवैकाकारबुद्धिग्राह्यत्वात्, यथा नञ्युक्तवाक्येषु ब्राह्मणादिनिवर्त्तनम् । न चेयं मिथ्या; कारणदोषबाधकप्रत्ययाभावात् । उक्तञ्च
"प्रत्येकसमवेतापि जातिरेकैक बुद्धित:। नयुक्तेष्विव वाक्येषु ब्राह्मणादिनिवर्त्तनम् ।।१।।
बुद्धि हुआ करती है, क्योंकि वह एक एक व्यक्ति में पूर्ण रूप से अनुभव में आती है, जैसे एक एक गो व्यक्ति में गो बुद्धि पूर्ण रूप से अनुभवित होती है ॥१॥
अनुमान प्रमाण इसी बात को सिद्ध करता है-जो यह "गो है गो है" इस प्रकार का अनुगत प्रतिभास होता है वह प्रत्येक गो व्यक्ति में समवेत हुए गोत्व सामान्य का विषय करने वाला है, क्योंकि व्यक्ति व्यक्ति के प्रति कृत्स्नरूपेन मौजूद जो सामान्य पदार्थ है उसके आकार रूप है, जैसे कि एक एक व्यक्ति को विषय करने वाला प्रतिभास या ज्ञान प्रत्येक में पूर्णरूपेन मौजूद व्यक्ति के आकार रूप ही होता है। इस सर्वगत सामान्य का एकत्व भी प्रमाण प्रसिद्ध है । अब सामान्य का एकपना अनुमान से सिद्ध करते हैं- यद्यपि सामान्य प्रत्येक गो आदि व्यक्ति में सर्वात्मना परिसमाप्त होकर रहता है तो भी वह एक ही है, क्योंकि "यह गो है, यह गो हैं" इस प्रकार की एकपने की बुद्धि द्वारा ग्राह्य होता है, जैसे नञसमास से संयुक्त वाक्यों में ब्राह्मणादि एक ही पदार्थ का व्यावर्तन होता है अर्थात् “यह ब्राह्मण नहीं है यह ब्राह्मण नहीं है"। इत्यादि वाक्यों में एक ब्राह्मणत्व का प्रतिषेध ग्राह्य होता है, इस एकत्व के प्रतिभास को मिथ्या भी नहीं कह सकते, क्योंकि इस ज्ञान में इन्द्रियादि कारण सदोष नहीं है और न बाधक प्रत्यय ही है। इसी विषय को आगे और भी कहते हैं -- प्रत्येक व्यक्ति में समवेत हुई भी वह जाति (सामान्य) एक रूप ही है, क्योंकि एक एक व्यक्ति में ऐसी ही बुद्धि होती है, जैसे कि नत्र समास प्रयुक्त वाक्यों में न ब्राह्मण: अब्राह्मणः, यह ब्राह्मण नहीं है अथवा यह अब्राह्मण है इत्यादि वाक्यों में एक ब्राह्मणत्व का व्यावर्त्तन
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